जब कांग्रेस कार्यसमिति ने इंदिरा गाँधी के नाम पर असहमति व्यक्त की !

आर कृष्णा दास

सोमवार को हुई कांग्रेस कार्यसमिति की महत्पूर्ण बैठक के बाद बताया गया कि नए अध्यक्ष चुने जाने तक सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी ।  नए अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को 6 महीने का समय दिया गया है। 

कार्यसमिति ने यह भी निर्णय लिया की पूरी पार्टी सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के साथ पूरी सकती के साथ खड़ी है। कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली शाखा कार्यसमिति में इस तरह का फैसला आना अप्रत्याशित नहीं था।  कार्यसमिति के अंदर नेतृत्व के खिलाफ बोलने के साहस शायद किसी नेता में नहीं होगा। 

यह अलग बात है बाहर गाँधी-नेहरू परिवार के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस का एक वर्ग चुनौती दे रहा है।  और उनका नेतृत्व करने वाले कोई छोटे कद के नेता नहीं है; कई उनमे से इंदिरा गाँधी के साथ काम कर चुके है।

कांग्रेस पार्टी इस समय एक संकट के दौर से गुजर रही है।  और वरिष्ठा नेताओ द्वारा उठाए गए मुद्दों को कार्यसमिति में नज़रअंदाज़ करना शायद पार्टी हित में नहीं था।  लेकिन क्या कोई कार्यसमिति के सदस्य आज गाँधी-नेहरू परिवार को पार्टी के हित में चुनौती दे सकता है?

लगभग छह दसक पहले कांग्रेस में यह स्थिति नहीं थी।  पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1959 में कार्यमुक्त हो रहे कांग्रेस अध्यक्ष यू एन ढेबर से श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम को उनके उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित करने के लिए कहा। ढेबर ने इसके लिए कांग्रेस कार्यसमिति की एक विशेष बैठक बुलाई।

जब उन्होंने इंदिरा गांधी का नाम रखा, तो अधिकांशय सदस्य इसके लिए तैयार नहीं हुए । उन्होंने एस निलिंगप्पा को नामांकित करने का फैसला किया। यहाँ तक गोविन्द वल्लभ पंत ने श्रीमती गांधी के नाजुक स्वास्थ्य के आधार पर विरोध किया।

नेहरू के लिए यह घटना अप्रत्यासित थी। बाद में उन्हें सदस्यों से कहना पड़ा कि इंदिरा काफी स्वस्थ हैं बल्कि वास्तव में “कुछ सदस्यों की तुलना में ज्यादा ही स्वस्थ हैं”। काफी प्रयास के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर लिया।

वास्तव में, जवाहर लाल नेहरू ने पहले ही इंदिरा को आगे लेन की योजना बना ली थी, लेकिन उन्होंने कभी भी कार्यसमिति की “शक्ति” और उसके विरोध का अनुमान नहीं था।

अपनी पुस्तक “बिटवीन द लाइन्स” में प्रसिद्ध लेखक कुलदीप नय्यर लिखते है कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री से एक बार पूछा कि आपको क्या लगता है कि नेहरू के मन में उनके उत्तराधिकारी के रूप में कौन है? “उनकी बेटी,” शास्त्री ने बिना किसी देरी के कहा।  वे (नेहरू) पहले ही इस समस्या का हल निकाल चुके हैं, शास्त्री ने कहा।

लेकिन उनकी इस योजना पर कार्यसमिति ने पानी फेर दिया।

कार्यसमिति का गठन दिसंबर 1920 में सी विजयराघवाचार्य की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में किया गया था। 1947 में स्वतंत्रता से पहले की अवधि में, कांग्रेस कार्य समिति सत्ता का केंद्र थी, और इसका अध्यक्ष कांग्रेस अध्यक्ष की तुलना में ज्यादा प्रभावी हुआ करता था।

१९६९ में इंदिरा गांधी और सिंडिकेट के सदस्यों जिनका नेतृत्व के कामराज कर रहे था के बीच मतभेद इतना बढ़  गया की कांग्रेस पार्टी को विभाजन के सामना करना पड़ा।  इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यसमिति उतनी शक्तिशाली नहीं रही।

1971 में इंदिरा गांधी की जीत के बाद एक बार फिर से कार्य समिति सत्ता का केंद्र बन कर उभरी।

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