कोरोना काल में हुई व्यावसायिक उथल पुथल ने कई बड़े कारोबारियों की कमर तोड़ के रख दी है ,आधुनिक खुदरा की अग्रणी कंपनियों में से एक फ्यूचर समूह के मालिक किशोर बियानी ने भी आखिरकार हार मान ली।
एक अच्छा खरीदार मिलते ही उन्होंने फ्यूचर ग्रुप को बेच दिया है । उन्होंने अरबपति मुकेश अंबानी को अपना प्रमुख कारोबार बेच दिया जिसमें सुपरमार्केट चेन बिग बाजार, अपमार्केट खाद्य भंडार फूडहॉल और एक प्रमुख कपड़ा कंपनी ब्रांड फैक्ट्री शामिल हैं।
24,713 करोड़ रुपये की इस मेगा डील ने रिलायंस रिटेल की स्थिति को संगठित खुदरा बाजार के निर्विवाद नेता के रूप में पेश किया है और भारतीय ई-कॉमर्स बाजार के लिए अमेज़ॅन के साथ चल रही लड़ाई को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है । लेकिन क्या रिलायंस इतने बड़े खुदरा कारोबार को बनाए रखने में सफल होगी?
वित्तीय विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों इस बात का अध्ययन करना शुरू कर दिया है कि आखिर बिग बाजार और किशोर बियानी से कहा चूक हुई। लेकिन किसी ने भी आम आदमी की इच्छा जानने की कोशिश नही की ताकि उनकी इच्छा के अनुसार अपने बिजनेस मॉडल को डिजाइन करे।
न्यूज़ Riveting इन गैर-वित्तीय विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए कुछ बिंदुओं को प्रदर्शित कर रहा है।
जैसा कि एक का कहना है कि बिग बाजार उन ग्राहकों को आकर्षित करने में असमर्थ है जो मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग से आते हैं।यहां मोलभाव करने का विकल्प उपलब्ध नहीं है और भारत में ग्राहकों को छोटी सी छूट पर भी खुशी मिलती है।
पश्चिमी शहरों के विपरीत, भारत में हर सड़क पर खुदरा या किराने की दुकानें हैं, और वास्तव में भारतीय लोगों के लिए एक बड़े खुदरा स्टोर का चयन करना बहुत मुश्किल है क्योकि वो अपनी हर आवश्यकता के लिए केवल एक सुपरमार्केट पर निर्भर नही रहता।
पश्चिमी देशों के बड़े रिटेल भी फायदे में होते हैं, जो शहर के बाहर होते हैं। ये डिब्बाबंद सामानों पर ज्यादा निर्भर होते हैं जिन्हें सीधे ही प्रयोग में लाया जा सकता है, जबकि भारतीय खाना पका के खाना पसंद करते हैं, आज भी कई भारतीय लोग सीधे किसानों से कच्चा माल खरीदते हैं। 60 प्रतिशत भारतीय आबादी आज भी गांवों में निवास करती है जहां इन महँगे रिटेल स्टोर्स का कोई महत्व नही है।
भारत में आज भी कई लोग कपड़े सिलवा कर पहनते हैं जिसके कारण इन कपड़ो की दुकानों में इतने ग्राहक नहीं होते हैं। और यही सब इन खुदरा स्टोरों को नुकसान पहुंचाता है जिन्हें बिजली और अन्य रखरखाव शुल्क के भुगतान करने की आवश्यकता होती है, इन्हें एक ही समय में अपने सामानों को आकर्षक और सस्ता बनाने का दबाव होता है।
उपभोक्ताओं में से एक ने देखा कि फ्यूचर समूह की विफलता में भारतीय ग्राहक की मानसिकता भी एक प्रमुख की कारण थी। विकसित देशों की तुलना में , एक औसत भारतीय ग्राहक एक बड़े स्टोर की चकाचौंध से डर जाता है, और एक छोटी किराना दुकान पसंद करता है। किशोर बियानी ने खुद अपनी पुस्तक “मेड इन इंडिया” में इसका समर्थन किया था कि कैसे उन्होंने अपने बड़े बाजारों के स्टोर को भारतीय ग्राहकों के अनुकूल परिवर्तित किया था ताकि एक आम भारतीय ग्राहक भी उनके स्टोर में आसानी से वस्तुओं का क्रय कर सके।
बड़ी खुदरा कंपनियों ने कभी भी ई-कॉमर्स की शक्ति का भी अनुमान नहीं लगाया था, जिसने उन्हें उनके ही खेल में हरा दिया। इसके अलावा ज्यादा लागत और कम लाभ भी इनके डूबने का एक और प्रमुख कारण रहा ।