लव कुमार मिश्रा
सफेद धोती पहने, दोनों हाथों में पिंड लिए और सच्ची भावनाओं के साथ क्या कंप्यूटर या मोबाइल के माध्यम से पितरों को नदी में तर्पण किया जा सकता है ? इसी परंपरा का विरोध बोध गया के पंडित और पांडा कर रहे है।
इस साल बिहार राज्य के पर्यटन बोर्ड और कुछ व्यवसायियों द्वारा ई-पिंड दान को बढ़ावा दिया। कारण था कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी।
गया के इतिहास में पहली बार, कोविड -19 महामारी को देखते हुए पिंड दान (पूर्वजों को श्रद्धांजलि और भोजन देने) की वार्षिक पाक्षिक अनुष्ठान को रद्द कर दिया गया है। वार्षिक पितृ पक्ष मेला, जिसमें दुनिया भर के दस लाख से अधिक भक्त शामिल होते हैं, ये पर्व कल से शुरू हुआ और 17 सितंबर तक जारी रहेगा।
बोध गया और पिंड दान का ऐतिहासिक और पौराणिक संबंध है। किंवदंती है कि गयासुर नामक एक दानव जिसके बाद इस शहर का नाम गया शहर पड़ा । इस असुर को विष्णु से वरदान मिला कि यहां पिंड दान करने वाले व्यक्ति के पूर्वजों की आत्माएं मुक्ती प्राप्त करेंगी और सीधे स्वर्ग को जाएंगी ।
जिसका अनुसरण करते हुए त्रेतायुग युग में, भगवान श्री राम ने भी गया में अपने पिता सम्राट दशरथ का पिंड दान किया था। कहा जाता है कि महाभारत काल के समय पांडवों मैं सबसे बड़े युधिष्ठिर ने भी यहां पिंड दान किया था। वर्तमान समय की आधुनिक प्रौद्योगिकी और व्यापार में नए नए तरीकों के साथ, पुजारियों का एक वर्ग ऑनलाइन पिंड दान को बढ़ावा दे रहा है।
गया जिला प्रशासन ने गुरुवार को दावा किया कि किसी भी भक्त ने ऑनलाइन प्रार्थना करने में रुचि नहीं दिखाई। ऑनलाइन पिंड दान के लिए केवल 1470 बुकिंग हुई जबकि गया में प्रति वर्षा लगभग दस लाख से अधिक लोग पिंडदान करते है । ऑनलाइन पिंड दान पसन्द करने वाले अधिकांश भक्त महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के निवासी मिले।
जिले के बाहर का कोई भी भक्त इस महापर्व के लिए बोधगया न आ पाए इसके लिए गया के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक सिंह ने शहर में बाहरी लोगों के प्रवेश पर आईपीसी, महामारी नियंत्रण अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की विभिन्न धाराओं के तहत आदेश जारी किए हैं । पुलिस बल के साथ मजिस्ट्रेटों को भी शहर के सभी अंतर-राज्यीय और अंतर-जिला प्रवेश मार्गों पर तैनात किया गया है । ग्रैंड ट्रंक रोड (NH2) जो बोधगया से गुजरती है, उसे भी बाहरी लोगों के लिए सील कर दिया गया है।
राज्य सरकार के राजस्व विभाग ने डीएम को एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें उन्होंने वार्षिक मेले को रद्द करने के लिए कहा था। डीएम ने अपने आदेश में पुजारियों (पंडों) को कहा कि पितृपक्ष के दौरान प्रशासन के लिए सोशल दूरी का पालन करवा पाना एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि विष्णुपद मंदिर में श्रद्धांजलि अर्पित करने और फल्गु नदी में पूजा करने के लिए जाने वाले अधिकांश भक्त 60 से 65 वर्ष के बुजुर्ग होते हैं।
राज्य के पर्यटन विभाग ने ई-पिंड दान के लिए तीर्थयात्रियों से प्रस्ताव आमंत्रित किए थे। हालांकि, स्थानीय पुजारियों और उनके संगठन श्री विष्णुपद प्रबंधन समिति ने ई-पिंड दान का विरोध करते हुए दावा किया कि यह हिंदू धर्म के खिलाफ है। समिति के सचिव गिरधारी लाल पाठक ने कहा कि इस अनुष्ठान में पूर्वजों को पिंड दान देने के लिए बोधगया मंदिर और फल्गु नदी दोनो ही जगहों पर उनके बच्चों की भौतिक उपस्थिति होना अनिवार्य हैं।
पुजारियों ने राज्य पर्यटन विभाग द्वारा शुरू किए गए ई-पिंड दान के इस कार्यक्रम को सिरे से खारिज कर दिया।
सनातन दर्शन के एक विद्वान मनोज मिश्रा ने कहा कि बिहार पर्यटन विभाग द्वारा अब पिंड दान का व्यवसायीकरण कर दिया गया है, जिसे बोधगया में एक पैकेज टूर की तरह प्रायोजित किया जा रहा है जिसमें ई-पिंड दान सेवा भी शामिल है। कुछ निजी गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्ति विशेषों ने भी इस पुण्य कार्य को एक व्यवसाय बना दिया है।
मिश्रा के अनुसार 10,000 से अधिक आचार्य हैं जो इस अवधि के दौरान हर साल अनुष्ठान करने में मदद करते हैं, उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया है।