नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2019 में शुरू की गई हवाई अड्डों के निजीकरण की नीति पिछली प्रक्रिया की तुलना में भारतीय खजाने में और अधिक वृद्धि करने में सहायक साबित होगी ।
हैदराबाद, दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोच्चि हवाई अड्डों के लिए पूर्व में अपनाई गई निजीकरण प्रक्रिया का निर्धारण बोली प्रक्रिया के माध्यम से किया गया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने नीति में परिवर्तन करते हुआ ‘प्रति यात्री शुल्क’ के आधार पर बोली आमंत्रित किया।
पिछली नीति की तुलना में यह एक अलग प्रक्रिया थी जिससे राजकोष में पहले की तुलना में जयादा राजस्व प्राप्त होगा।
2019 में, नरेंद्र मोदी सरकार ने अहमदाबाद, जयपुर, मैंगलोर, त्रिवेंद्रम, गुवाहाटी और लखनऊ जैसे छह हवाई अड्डों के लिए निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की। इन हवाई अड्डों के तेजी से बढ़ते यातायात और लाभदायक संचालन ने इसकी महत्ता बढ़ा दी और सबका ध्यान इस ओर आकर्षित किया ।
जी एम आर , पी एन सी इंफ्रा , ए एम पी कैपिटल, नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर फाइंड ,ज्यूरिख एयरपोर्ट्स, केरल स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कोऑपरेशन , कोचीन एयरपोर्ट सहित कई बड़े व्यावसायिक संस्थान हवाई अड्डों के निजीकरण की इस दौड़ में शामिल थे। प्राप्त 32 बोलियों में से 10 को शॉर्टलिस्ट किया गया हैं।
जब अधिकारियों ने निविदा खोली तो पाया की अडानी समूह द्वारा दिया गया प्रस्ताव न केवल सबसे अधिक थी, बल्कि सबसे बड़ी मार्जिन के साथ थी। अडानी ने सरकार को जो प्रति यात्री शुल्क की पेशकश की वह कुछ हवाई अड्डों के लिए निकटतम प्रतियोगी की तुलना में 155 प्रतिशत तक अधिक थी।
त्रिवेंद्रम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए, जिसके लिए केरल सरकार ने बहुत अधिक हल्ला मचाया था, अडानी ने केरल राज्य औद्योगिक विकास निगम के 135 रुपये और जीएमआर के 63 रुपये के मुकाबले 168 रुपये प्रति यात्री का दावा किया।
मैंगलोर एयरपोर्ट सौदे में भी व्यावसायिक समूहों के बीच एक बड़ा अंतर देखा गया। इस एयरपोर्ट के लिए अडानी ने जहाँ 115 रुपये की बोली लगा के अनुबंध प्राप्त किया, इनके निकटतम प्रतिद्वंदी कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे ने प्रति यात्री सिर्फ 45 रुपये की कीमत की पेशकश की।
इसी तरह, अहमदाबाद हवाई अड्डे के लिए, अडानी ने 177 रुपये की पेशकश की, जबकि एएमपी की बोली केवल 127 रुपये प्रति यात्री थी।