अपनी नेकनामी बचाते कश्मीरी नेता

फारूक अब्दुल्ला अपने बेटे उमर अब्दुल्ला के साथ

नेशनल कांफ्रेंस के दिग्गज नेता फारूक अब्दुल्ला अपने बेटे उमर अब्दुल्ला से परेशान है और उनके द्वारा कश्मीर मुद्दे पर दिए गए विवादास्पद बयान के लिए डैमेज कंट्रोल की कवायद में लगे हुए हैं।

हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम पर दिया गया विवादास्पद बयान जिसमे फारूक ने कहा कि कश्मीरियों को चीन के साथ जुड़ना पसंद है, इस स्वप्रचारित कश्मीरी नेता की हताशा को प्रदर्शित करता है।

जम्मू कश्मीर राज्य के विभाजन और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, कश्मीर में अलगाववाद की राजनीति सिमट सी गई है, और इससे जुड़े नेताओं में भ्रम की स्थिति दिखाई पड़ रही है।

नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के बीच कश्मीर से जुड़े मसलों के बीच आंतरिक कलह देखी जा रही है। धारा ३७० हटाये जाने के मामले में उमर ने कहा “मुझे लगता है कि इन मसलों पर हड़ताल या बड़ा आंदोलन करने का समय बीत चुका है।” जब तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, तो एक साल बाद कोई सड़कों पर क्यों उतरेगा, उन्होंने कहा, वे इसे राजनीतिक रूप से, कानूनी रूप से लड़ेंगे।

जुलाई में उमर के एक और बयान ने नेशनल कांफ्रेंस नेताओं को चकित कर दिया था जब उन्होंने धारा 370 को बहाल करने की वकालत करने के बजाय, यह कहा कि वह तब तक विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक कि जम्मू-कश्मीर को अलग राज्य का दर्जा नहीं दे दिया जाता। जबकि पार्टी धारा 370 को बहाल करने को ही अपना प्रमुख मुद्दा बना कर चल रही थी ।

अब उनके पिता फारूक अब्दुल्ला स्वयं आगे आ कर इस नुकसान की भरपाई का प्रयास कर रहे है। इसका अवसर उन्हें संसद के मानसून सत्र के दौरान मिला जब वे दिल्ली आये। श्रीनगर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद होने के नाते उन्होंने इस मामले पर अपनी बात रखी।

संसद में प्रवेश करने से पहले उन्होंने “जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति की बहाली के लिए संघर्ष के रूप में अपनी ‘गुप्कर घोषणा’ को दोहराया। “गुप्कर” अब्दुल्ला के श्रीनगर निवास का नाम है और यह प्रस्ताव 4 अगस्त, 2019 को वहां हस्ताक्षरित की गई थी,इसलिए इसे यह नाम दिया गया था।

इस बैठक के दौरान क्षेत्र के बड़े नेता जैसे महबूबा मुफ्ती और पीडीपी के मुजफ्फर हुसैन बेग, जेकेपीसी के सजाद लोन, जेकेपीसीसी के ताज मोहिउद्दीन, सीपीआईएम के एम वाई तारिगामी के साथ अब्दुल्ला परिवार भी वहां मौजूद थे। सभी ने मिलकर “जम्मू और कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और विशेष दर्जे” की रक्षा करने का प्रण लिया था।

हालांकि वरिष्ठ अब्दुल्ला अपने घर को व्यवस्थित रख पाने में असफल नजर आ रहे हैं। चीन मुद्दे पर दिए गए अपने बयान से सुर्खियों में आने के ठीक पहले अब्दुल्ला ने संसद में एक अलग ही स्वर में बात की। उन्होंने कहा “जम्मू और कश्मीर के लोगों को देश के बाकी हिस्सों की तरह ही प्रगति और विकास का अधिकार है।” जबकि ये वही अब्दुल्ला हैं जिन्होंने दावा किया था कि कश्मीरी अपने आप को भारतीय महसूस नहीं करते हैं।

यही अव्यवस्था हुर्रियत में भी दिखाई देती है। सैयद अली गिलानी जिन्होंने जून, 2020 में सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने इस्तीफे के कारणों के रूप में संगठन के खिलाफ कई सवाल उठाए थे और कहा था कि संगठन के नेताओं द्वारा धारा 370 को हटाए जाने का सही तरीके से विरोध नहीं किया था ।

कश्मीर के ये स्वघोषित नेता जानते हैं कि अब धारा 370 कोई प्रमुख मुद्दा नहीं है और आम जनता से इसका कोई सरोकार नहीं रह गया है।

कश्मीरी नेता सिर्फ राजनीति में बने रहने के लिए अब जद्दोजहद कर रहे है।

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