तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान को क्यों नहीं हराया जा सकता?

असहाय पाकिस्तानी सेना

आर कृष्णा दास

आतंकी संगठन तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने दो दिन पहले सरबंद पुलिस स्टेशन पर बड़ा हमला किया जिसमें 3 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। हमले में मारे गए पुलिसकर्मियों में डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सरदार हुसैन और दो कांस्टेबल शामिल हैं। 

अभी तक ऐसे उग्रवादी संगठनो को प्रश्रय देने वाली पाकिस्तान लगातार हो रहे हमलो के बाद भी आखिर क्यों टीटीपी को ख़त्म नहीं कर पा रही है। युद्ध के इतिहास से हम जानते हैं कि अकेले हथियार युद्ध नहीं जीत सकते; प्रेरणा महत्वपूर्ण है।

पाकिस्तानी सेना के साथ विडम्बना यह है कि उन्हें सिर्फ भारत से लड़ना सिखाया जाता है। उनकी सेना मानसिक और शारीरिक रूप से भारत केंद्रित है और रक्षा कॉलेज के अधिकारियों को अभी भी दूसरे घातक दुश्मन से मुकाबला करने तैयार नहीं किया जाता।

तुलना करें: आधिकारिक गणना के अनुसार, 2002-2014 में आतंकवाद से पाकिस्तान में 70,000 मौतें हुईं, जबकि पाकिस्तान-भारत के सभी चार युद्धों में मारे गए पाकिस्तानियों की संख्या लगभग 18,000 है।

अगर पाकिस्तान को अंततः काबुल में टीटीपी और उसके समर्थकों को हराना है, तो उनके सैनिकों को पता होना चाहिए कि वे किस लिए और क्यों लड़ रहे हैं। वैचारिक रूप से भ्रमित सेना लड़ने और जीतने की उम्मीद नहीं कर सकती। स्पष्ट रूप से बताए गए कारण के बिना, प्रबल प्रेरणा नहीं हो सकती। इसलिए अब तक पाकिस्तान हार रहा है और टीटीपी की जीत हो रही है।

यह अजीब, अनिश्चित और विचित्र व्यवहार एक वैचारिक शून्यता के कारण है जो विभिन्न अस्वास्थ्यकर अटकलों के लिए जगह बना रहा है। काबुल स्पष्ट रूप से टीटीपी का समर्थन कर रहा है लेकिन पाकिस्तान के लिए 2021 से पहले का अच्छा-तालिबान, बुरा-तालिबान दर्शन अभी भी बरकरार है।

अफ़ग़ान तालिबान को सत्ता में लाने में मदद करना एक व्यापक रणनीतिक चूक थी। वर्षों से पाकिस्तान के सुरक्षा प्रबंधकों ने राज्य प्रचार मशीनरी का इस्तेमाल लोगों को यह आश्वस्त करने के लिए किया कि अफगान और पाकिस्तानी तालिबान हर तरह से अलग हैं। वह भ्रम पूरी तरह से उजागर हो गया है।

काबुल के नए शासकों ने खुले तौर पर पाकिस्तान पर ताना मारा, अफगानिस्तान के अंदर टीटीपी के अभयारण्यों के खिलाफ संभावित पाकिस्तानी हवाई या जमीनी घुसपैठ को खारिज कर दिया। पाकिस्तान ने अपने लिए एक और शत्रुतापूर्ण पड़ोसी और एक और दुःस्वप्न पैदा कर लिया है।

सामरिक भूलों से भी पाकिस्तानियों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। टीटीपी के शीर्ष नेता जैसे मुस्लिम खान और पहले, एहसानुल्लाह एहसान को गुप्त रूप से रिहा कर दिया गया था। क्यों? आतंकवादियों के साथ बातचीत करने की तत्परता और उनकी मांगों को मानने से उनका बहुत हौसला बढ़ा है।

पिछले 50 दिनों में 100 से ज्यादा हमले हो चुके हैं। उनमें से सबसे घातक पिछले हफ्ते टीटीपी द्वारा बन्नू में काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट पर कब्जा था। टीटीपी के बढ़ते प्रभाव से पाकिस्तान की महिलाएं सबसे ज्यादा चिंतित है क्यूंकि अफ़ग़ानिस्तान में जो हो रहा है उसकी वे अपने देश में कल्पना भी नहीं कर सकते।

पाकिस्तान की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए परमाणु हथियारों और उन्नत अमेरिकी-चीनी हथियारों से लैस 600,000-मजबूत सेना असहाय लग रही है। अपने व्यावसायिकता और गैर-पारंपरिक युद्ध में अनुभव के बाद भी पाकिस्तानी सेना स्थानीय आतंकवादी मिलिशिया को हरा पाने में असफल नज़र आ रही है। 

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