अनिल शुक्ला
पिछले 2 महीने से चल रहे किसान आंदोलन का कहीं कोई अंत होता नहीं दिख रहा है। 11 वें दौर की वार्ता भी बेनतीजा समाप्त हो गई।
किसानों से संबंधित कथित तीनों कानून प्रारंभ से ही विवादास्पद रहे हैं। वैसे भी जब भी कोई कानून बनाया जाता है तो कुछ बातें आवश्यक रूप से ध्यान में रखी जाती हैं। पहला कानून संवैधानिक सीमा में हो।दूसरा, कानून जिनके लिए बनाया जाए उन से चर्चा उपरांत ही बनाया जाए और तीसरा, कानून जनहित में हो और दूसरे कानूनों से उसका टकराव ना होता हो।
कथित तीनों कानून इन कसौटी पर खरे नहीं उतरते। क्योंकि इनकी संवैधानिकता प्रारंभ से ही विवादित रही है। इसका समाधान सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा ही संभव है। यही कानून यदि संसद की स्टैंडिंग कमेटी के विचार उपरांत संसद में पास कराया जाता तो शायद यही स्थिति नहीं बनती। परंतु अब तो यह कानून संसद से पारित होकर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर उपरांत प्रवर्तन में आ गए हैं।
ऐसी स्थिति में विवादित कृषि संबंधी कानूनों से उत्पन्न विषम परिस्थिति का समाधान या तो सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा हो सकता है या सरकार द्वारा संसद के माध्यम से कानून वापस लेकर।
जहां एक ओर केंद्र सरकार कानूनों को कुछ समय, एक से डेढ़ वर्ष के लिए स्थगित करने को तैयार है । दूसरी ओर किसान पूरा कानून ही वापस लेने की जिद पर अड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में समस्या का समाधान शीघ्र संवैधानिक ढंग से हो यह आवश्यक है । इसके लिए क्रमबद्ध तरीके से कार्यवाही की जाए तो निश्चित थी समस्या हल हो सकती है ।
सब से पहले केंद्र सरकार तीनों कानून का प्रवर्तन तब तक रोक दें जब तक सर्वोच्च न्यायालय इन कानून की संवैधानिकता पर अपना निर्णय ना दे दे। दूसरा, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून को असंवैधानिक घोषित करने पर कानून स्वयं समाप्त हो जाएंगे। तीसरा ,सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून संवैधानिक घोषित करने की स्थिति में कथित तीनों कानून की कमियों को लेकर उसके गुण दोष पर विचार का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा ।
चौथा, ऐसी स्थिति में संसद की स्टैंडिंग कमेटी के पास कानून पूरा संशोधन हेतु विचार हेतु भेजा जाना चाहिए। फिर स्टैंडिंग कमिटी किसानों विशेषज्ञों व अन्य संबद्ध व्यक्तियों सांसदों से विचार के बाद अपनी अनुशंसा करें । रिपोर्ट आने के बाद संसद द्वारा संशोधित कानून पारित किया जाए । पांचवां, जहां तक न्यूनतम समर्थन मूल्य का संबंध है इस विषय पर भी मंडियों या मंडियों के बाहर फसल बेचने पर कानून बनाया जाना चाहिए। यह भी संबंधित लोगों द्वारा विचारोपरांत किया जाना चाहिए।
कोविद के प्रकोप , 26 जनवरी के समारोह, ठंड और सामाजिक जीवन इन सब को देखते हुए इतनी विपरीत परिस्थितियां हैं कि इनमें किसी भी आंदोलन को शांतिपूर्वक लंबे समय तक चलाए जाना जनहित और देश हित में नहीं होगा।