महामारी में चीन की फूट डालो और राज करो की नीति

पटरी पर लौटने लगी है व्यवस्था

आर कृष्णा दास

चीन कोविड-19 के प्रकोप से निपटने में भारत को मदद की पेशकश कर फूट डालो और राज करो का खेल खेलने की कोशिश कर रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत के दौरान संकट से निपटने के लिए वाशिंगटन की मदद का वादा किया जो चीन को नहीं भा रहा है । कोरोना की आड़ में चीन भारत को क्यूएसडी से अलग करने की कोशिश कर रहा है।

चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (QSD या क्वाड), संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक मंच है जो कि सदस्य देशों के बीच अर्ध-नियमित शिखर सम्मेलन, सूचना आदान-प्रदान और सैन्य अभ्यास द्वारा बनाए रखा जाता है। चीन इसका विरोध कर रहा है और क्वाड देशों की बैठक से परेशान है। वह अब भारत को इससे अलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है वह भी कोरोना संकट की आड़ में।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी-समर्थित ग्लोबल टाइम्स ने एक रिपोर्ट में कहा, “भारतीय नागरिको के बीच कुछ आवाजें आई हैं जो अपने देश को अमेरिका के नेतृत्व वाले चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) से अलग करने की बात कर रहे है क्योंकि अमेरिका ने कोरोना से निपटने में भारत की मदद करने का प्रयास नहीं किए जो खतरनाक संकट के बीच चिकित्सा संसाधनों की भारी कमी का सामना कर रहा है। ”

रविवार तक व्हाइट हाउस ने घोषणा नहीं की थी कि अमेरिका “जरूरत के समय में भारत की मदद करेगा”। भारत में केवल कम्युनिस्ट पार्टी ने क्वाड से अलग होने की मांग की थी जिससे चीन भारत के आम लोगो की राय बता रहा है ।

“आपके अगले दरवाजे के पड़ोसी आमतौर पर आपातकालीन स्थिति में पहले मदद करने के लिए होते हैं, आपके दूर के दोस्त बहुत बाद में आते हैं। भारत को अब तथाकथित सबसे अच्छे दोस्त अमेरिका के साथ अपने संबंधों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए जो ग्रह पर सबसे स्वार्थी टुकड़ा है,” चीन के अखबार ने एक गुमनाम भारतीय के हवाले से कहा। भारत के पास क्वाड छोड़ने का नैतिक साहस होना चाहिए।

अखबार ने कहा कि महामारी की लड़ाई में भारत की सहायता करने के लिए चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा एक सप्ताह से भी कम समय में कम से कम तीन बार इच्छा व्यक्त की है। अखबार ने आगे लिखा कि भारतीय नागरिक चीन की इस उदारता की व्यापक सराहना कर रहे है।

भारतीय विश्लेषकों ने हालांकि चीन की इस रणनीति को भाप लिया है और उनका मानना है कि बीजिंग ईमानदारी से भारत के बारे में चिंतित नहीं है बल्कि इसके बजाय भारत और अमेरिका के बीच फूट डालना चाहता है । यही कारण है चीन आरोप लगा रहा है अमेरिका ने समय रहते भारत को वैक्सीन कच्चे माल भेजने में विफल रहा।

एक वरिष्ठ राजनयिक ने कहा, “इस तरह के मामलों में बीजिंग के सोच के पीछे हमेशा एक छिपा हुआ एजेंडा होता है।” चीन भारत को संकेत देना चाहता है कि अमेरिका [जिसने शुरू में भारत को मदद से इनकार कर दिया] वह एक विश्वसनीय साझेदार नहीं है और दिल्ली और वाशिंगटन के अच्छा रिश्ता में दरार लाना चाहता है।

ग्लोबल टाइम्स अखबार ने पिछले दिनों भारत को सहायता प्रदान करने में विफल रहने के लिए अमेरिका की आलोचना की और यह सुझाव देते हुए कहा कि भारत के लिए वह एक विश्वसनीय भागीदार नहीं है। भारत और अमेरिका पिछले कुछ सालो में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए निकट संबंध बनाए हुए हैं।

बीजिंग की सहायता की पेशकश पर नई दिल्ली चुप है क्यूंकि नरेंद्र मोदी सरकार आम भारतीयों की भावनाओं का सम्मान कर रही है। सीमा संघर्ष को लेकर भारत के आम लोगो में चीन के खिलाफ काफी आक्रोश है। चीन चाहता था कि भारत उसके हाथों में खेले और अगर मदद की पेशकश को स्वीकार कर लेता है तो चीन की भू-राजनीतिक मंच पर वर्चस्व स्थापित करने की कूटनीति को कुछ सफलता मिल सकती है।

चीन की कुटिल चाल इस बात से उजागर होती है, यदि वास्तव में वह भारत को लेकर इतना चिंतित तहत तो कम से कम मेडिकल सप्लाई कर रहे कार्गो विमानों का परिचालन नहीं रोकता।

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