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मध्यप्रदेश आपातकाल में न केवल अन्धाधुंद गिरफ्तारियां के मामले में बल्कि अमानवीय अत्याचार ढाये जाने के संबंध मे भी विश्वभर में बदनाम हो गया था। इस प्रदेश में कई पुलिस अधिकारी इन्सानियत छोड़कर हैवान बन गये थे। कहते है कि मानव मूलतः खूखॅार शैतान है। उसकी शैतानियत सभ्यता के आवरण मे छिपी रहती है। अवसर मिलते ही वह उभर आती है। इसका जवलंत उदाहरण देवास के तत्कालीन पुलिस अधिक्षक ओंकार चंद का है। कुछ घटनाओ का विवरण:
हैवानियत भी कांप उठी:
नंवबर के द्वितिय सप्ताह में देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के साम ग्रामीण कार्यकर्ताओं ने देवास में आकर सत्याग्रह किया। इस जत्थे का नेतृत्व सोनकच्छ तहसील कार्यवाह रामचंद्र कर रहे थे। पुलिस उन्हें पकड़ कर थाने ले गयी। प्रांरभिक मारपीट के बाद उनसे कहा गया कि उन्हे जयप्रकाश मुर्दाबाद अटलबिहारी मुर्दाबाद इदिंरा गांधी जिंदाबाद के नारे लगाने होंगे। सत्याग्रहियों ने जब इन्कार किया तब पुलिस कुछ गुंडो को किराये पर ले आयी तथा सादे वेश में पुलिस भी जूलूस के लिए सिद्ध हो गयी।
सत्याग्रहियों को उन्होने बीच में कर लिया सबके सिरों पर केसरियां टोपियां पहनायी गयी । जुलूस में पुलिस द्वारा बताये गए नारे लग रहे थे, किन्तु उन्हे वही किराये के गुंडे लगा रहे थे। थाने में वापस लौट आने पर पाशविक यंत्रणा का दौर प्रारंभ हुआ। पुतिस अधीक्षक के आदेश पर बीस-पचीस पुलिस वालो ने जूतों, घूसों डंडो आदि से सत्याग्रहियों को पीटना प्रारम्भ किया। उनके कपड़े फाड़ डाले गये। उन्हे उलटा नीचे पटक कर उनके नंगे शरीरों पर कीलदार जूतें पहने पुलिस वाले नृत्य करने लगे। सत्याग्रहियों के बेहोश होने पर ही यह नृत्य बंद हुआ। पुलिस वाले तके रहते थे। जो भी जरा सा होश में आता था उसके शरीर पर फिर से वही पिशाच-नृत्य प्रारत्भ हो जाता था।
इन तीन दिनों में उन्हे भोजन- पानी और कपड़ा बिल्कुुल नही दिया गय। बाद में उन्हे धारा 151 के अंतर्गत दंडाधिकारी के सम्मुख पेश किया गया। उनकी जमानत देने के लिए पीपल के निर्भयसिंह तैयार हुए। पुलिस ने उन्हे धमकी दी और थाने में बंद कर दिया। उनकी एक तरफ की मूंछ सफा कर दी गयी। एंसा हाने पर भी उन्होने अड़तालीस हजार की जमानत पर सबको छुड़ाने का साहस दिखाया। दूसरे दिन ही देवास में इस प्रकरण की पेशी तय हुुई। सत्याग्रही और जमानतदार पेशी में न आ सके, इसके लिए इन सबको साहब से मिलाने के बहाने पुलिस वाहन में बिठाकर चालीस मील दूर कन्नौद केे जंगल में अलग-अलग स्थानों पर छोड़ दिया गया। भाग्य अच्छा था, इसलिए वे दूसरे दिन सुबह किसी प्रकार से देवास पहुंच गयंे। इसके बाद भी पुलिस के लोग लगातार छः मास तक उनके घर जाते थे और घर वालो को हर तरह से परेशान करतें थे।
बिजली के झटको पर झटकें:
इंदौर नगर के एक सत्याग्रही जत्थे का नेतृत्व विष्णुपंत खाम्बेटे ने किया था। गोंविंद चैरसिया, रतन वैष्णव और यशोधर जैन उनके साथी थे। पहले उन्हे बुरी तरह पीटा गया। वे बेहोश हो गयें। भंयकर सर्दी में नंगे शरीर उन्हे फर्श पर पटक दिया गया। साथ ही बाल नोचना, करेंट लगाना भी चालू रहा। ठंडे पानी के हौज में लिटाकर उस पानी में बिजली का करेंट छोड़ा गया। इन सारी यातनाओं में मध्य वे अनेक बार बेहोश हुए। होश में आने के बाद फिर उन पर अत्याचार किए गये। बेहोशी की अवस्था में ही उन्हे मीसा बंदी बनाकर जेल में भेज दिया गया।
अधमरा किया:
मध्यप्रदेश विद्यार्थी परिषद् के संगठन -मत्रीं तथा सघंर्ष समिति इंदौर के सचिव चंपालाल यादव को पहले सामान्य पिटाई के द्वारा अधमरा कर दिया गया। बाद में उन्हे रस्सी से बांध कर निर्वस्त्र अवस्था में छत से उलटा लटकाया गयां। उनके चेहरे पर सूजन आने पर उन्हे उतारा गया। इसके बाद हाथ-पैर व गुप्तागों में बिजली के झटके दिये गये। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहां। इसके बाद उन्हे जेल भेजा गया। वहां वे महीनों तक अपने हाथों से कुछ भी काम नही कर पातें थंे। इतने वेे दुबले हो गये थे।
अगुलियों को भुर्ता बनाया:
होशंगाबाद जिला विद्यार्थी परिषद् के संगठन -मत्रीं शम्भू सोनकिया आपबीती बताते हुआ कहा, हम 6 कार्यकर्ताओं ने 20 जनवरी 76 भोपाल में सत्याग्रह किया। हमं पकड़कर सर्राफा बाजार पुलिस चैकी ले जाया गया। रात को हमें नंगा कर एक अधेंरी कोठरी में बंद कर दिया। कड़ाके से हिला देने वाली ठंड और उस पर सीमेंट का फर्श। न कुछ ओढने को न बिछाने को। व पानी का तो प्रश्न ही नही। सबेरे पुलिस चैकी से हमारे जत्थे के नेता-विद्यार्थी परिषद् के प्रातींय मंत्री सुरेश गुप्ता को बुलाया गया। थोड़ी देर में हमें बाजू केे कमरें में सुरेश गुप्ता कि चीखें सुनाई पड़ने लगीं। बुरी तरह पिटाई कर उन्हे वापस भेजा गया। वे लड़खड़ाते हुए कोठरी में आए और यह कहते हुए बेहोश हो गये बुरी तरह मारा है राक्षसों ने।
उसके बाद मुझे बुलाया गया। पूछा गया-केलकर कहां है ? मै किसी केलकर को नहीं जानतां यह उत्तर सुनते हि पुलिस सी.आई मुझ पर टूट पड़ा। निर्मम पिटाई से अचेत सा हो मै फर्श पर गिर पड़ा। इस पर भी उदस अधिकारी ने अपने कीलदार जूतों से मुझे ठोकरें मारना जारी रखा। इस यातना के बाद भी जब मैने कुछ न बताया तो मेरे हाथें की अगुंलियो को मोटे रुलो के बीच रख कर जोर से बार-बार दबाया। मर्मान्तक पीड़ा हो रही थी। पर अधिकारी को मेरी पीड़ा में शायद बर्बर आनन्द की अनुभूति हो रही थी। मेरी अंगुलियों का पूरा भुर्ता बन गया। 5-6 दिन तक वे सीधी भी न हो सकी। फोड़े की तरह वे तड़कती थी। शाम को हमें जेल भेज दिया गया। पर वहां भी मीसा बंदियों के बीच न रखकर हमें गुनाहखने में रखा गया।
15 दिन बाद मुझे छोड़ा गया। पर मुझे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस फिर फाटक पर तैयार थी। पहले हमें धारा 151 के अन्तर्गत बंदी बनाया गया था, अब भारत कि सुरक्षा अधिनियिम का उपयोग किया गया। 7 मार्च को विद्यार्थी होने से मुझे परीक्षा के लिए छोड़ गया, परंतु 16 मार्च को फिर मीसी के अंतर्गत बंद कर दिया गया। मेरे परिवार वालों को भी सताया जा रहा था। छापा मारकर बहुत सारा सामान पुलिस लूट कर ले गयी । इन सब मानसिक तनावों के कारण मेंरे पिता जी कि मस्तिष्क कि नस फट गयी और उनका दंेहात हो गया। मैं उनके अंितंम देने में भी जानबूझकर देरी की गयी।
बर्फ कि शिला पर:
भारतीय युवा संघ के प्रादेशिक तेजंसिंह सैधंव ने पांच साथियो के साथ सत्याग्रह किया। इन सभी को बिजली के झटके लगाने से लेकर उलटे टागनें जैसी यातनाओं में से गुजरना हि पड़ा। कड़ाके कि सर्दी में उन्हे हिम (बर्फ) की सिल्ली पर लिटाया गया। ये सब अत्याचार भी उसी दुष्टतामूर्ति ओंकार चंन्द के निर्देशन में ढाये गये।
बेहोशी ही सहारा:
उज्जैन के 18 वर्षीय छात्र-विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता राजेंद्रकुमार कड़ेल को 17 जुलाई को 75 को सत्याग्रही के रुप में गिरफ्तार किया गयां रात भर वह पीटा जाता रहा। संगीनो की नोंकें उसकी देह में चुभायी गयी। उसे बिजली का करंअ लगाया गया। इन यातनाओं के कारण वह बेहोश हो गया । उसी हालात में उसे अति प्रभात में घर पर पहुंचाया गया। घरवालों को चेतावनी दी गयी कि इसे आठ बजे तक कोतवाली पहुंचा देना । राजेंद्र को पुलिस की सूचना के अनुसार आठ बजे कोतवाली पहुंचा दिया गया। वह लगातार सात दिनों तक उसे कठोर यातनांए दी जाती रही। सात दिनों मे केवल दो बार भोजन मिला। उसे सोने नही दिया गया। बस बेहोशी की अवस्था ही उसे नींद का सुख देती थी।
आपातकाल् के दौरान इस किशोर छात्र को पंद्रह बार अलग-अलग आरोपों से गिरफ्तार किया गया और हर बार उसे दन्ही यातनाओं से गुजरना पड़ा।
मरणासन्न:
उज्जैन की एक संघ-शाखा के मुख्य शिक्षक सेवाराम वाधवानी को 29 दिसंबर 75 को गिरफ्तार किया गया। पुलिस थाने में उन्हे उपर लिखे हुए सभी अत्याचार सहन करने पड़े। सेवाराम के साथ उनके छोटे भाई देवीदास व चचेरे भाई लक्ष्मण को भी सब प्रकार के कष्ट झेलने पड़े। अन्य दो भाईयों को जेल भेज दिया गया, पंरतु सेवाराम कि हालात मरणासन्न हाने से थानेदार ने झूठी खबर फैला दी की सेवाराम पुलिस कस्टडी से भाग गया है। सेवाराम का और अनके बच्चों का भाग्य ठीक हाने के कारण की सेवाराम मरे नही, बच गये।
डाक्टर भी आंतक के साये में:
उज्जैन के स्वंयसेवक राजेंन्द्र शिदें पर हुए अत्याचार की कहानी भी रोगंटे खड़े करने वाली है। उन दिनो डाक्टरों पर भी पुलिस का कैसे आंतक छाया हुआ था। इसका भी यह परिचय देती है। 14 नंवबर को राजेंद्र ने सत्याग्रह किया। गिरफ्तारी के बाद उसे बिना खाना दिये रखा गया। सी.एस.पी. के कमरे में बुलाकर उसे अनेको ने बुरी तरह पीटा। जब वह बेहोश हुआ, तब उसे कोठरी में पटक दिया गया। वह उसे न भोजन दिया गया न पानी दिया गया। सीने में तथा पेट में हुई अंदरुनी चोंटो के कारण राजेंद्र अर्धबेहोशी की अवस्था में था। उसी अवस्था में उसे भैरोगढ़ जेल भेज दिया गया। मीसा बंदियों द्वारा भूख हड़ताल करने पर ही उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, किंतु बिना ईलाज किये ही उसे जेल में वापस ले आया गया। होश आया तब उसने अपने को अस्पताल में पड़ा पाया। परंतु वहां पर भी वह जंजीरों से बंधा था।
(साभार: आपातकालीन संघर्ष गाथा)