भारतीय रेल ने 44 सेमी हाई-स्पीड वंदे भारत ट्रेनों के निर्माण के लिए बुलाई गई निविदा को रद्द कर दिया है । माना जा रहा है कि ये निर्णय वर्तमान में भारत चीन संबंधों को ध्यान मे रखकर लिया गया है । चीनी स्वामित्व वाली एक कंपनी ने भी इस निविदा मैं भाग लिया था ।
भारतीय रेलवे में घुसकर मुनाफा कमाने की चीन की योजना को करारा झटका लगा है।चीनी स्वामित्व वाली सी आर पी सी कॉर्पोरेशन जो एक भारतीय फर्म के साथ मिलकर 1,500 करोड़ रुपये की वंदे भारत ट्रेन परियोजना को प्राप्त करने की दौड़ लगाने वाली छह कंपनियों में शामिल थी, को भारतीय रेल्वे के इस फैसले से काफी निराशा हुई ।
दिलचस्प बात यह है कि, ये चीनी कंपनी एकमात्र विदेशी कंपनी थी जिसने यात्रियों को विश्व स्तरीय सुविधा देने के लिए भारतीय रेलवे द्वारा शुरू की गई भारत की प्रतिष्ठित ट्रेन परियोजना में निवेश करने की रुचि दिखाई थी ।
चीन स्थित सी आर पी सी योंगजी इलेक्ट्रिक ने गुरुग्राम स्थित कंपनी के साथ मिलकर सी आर पी सी पायनियर इलेक्ट्रिक (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड नामक नई इकाई के नाम से निविदा में भाग लिया था।
निविदा 22 दिसंबर 2019 को मंगाई गई थी। यह निविदा तीसरी बार वंदे भारत ट्रेनों के लिए बुलाई गई थी, जिसे ट्रेन 18 के रूप में भी जाना जाता है । ट्रैन 18 अपनी शुरूआत से ही लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बन गई थी ।
रेलवे ने अपनेे ट्वीट में कहा , मेक इन इंडिया की सोच को ध्यान में रखते हुए एक सप्ताह के भीतर नए सिरे से निविदा जारी की जाएगी। रेलवे ने परियोजना को स्वदेशी रूप देने के संकेत दे दिए हैं। वर्तमान में संचालित दो वन्दे भारत ट्रेनों का निर्माण स्वदेशी रूप से चेन्नई िस्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में किया गया था। दोनों ट्रेनें दिल्ली-वाराणसी और दिल्ली-कटरा रूट पर चल रही हैं।
सबसे पहली 16-कोच की वंदे भारत एक्सप्रेस दिल्ली और वाराणसी के बीच चलाई गई थी । जिसे 15 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हरी झंडी दिखाई गई थी।
ट्रेन अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है, जैसे कि स्वचालित दरवाजे, वाई-फाई उपलब्धता और सीसीटीवी कैमरे और कई अन्य उन्नत सुविधाएँ। अपनी उन्नत सुविधाओं की वजह से इन्हें शताब्दी ट्रेनों की जगह चलाने पर विचार किया जा रहा है।
आज संपूर्ण भारत में जहां चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने हेतु अभियान चलाया जा रहा है वही भारतीय रेल्वे ने भी सम्भवता अपनी भूमिका निभा दी है।