आर कृष्णा दास
पिछले सप्ताह के अंत में जैसे ही भारतीय वायु सेना का परिवहन विमान अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस में उतरा, पड़ोसी देश पाकिस्तान में मीडिया ने इसका विश्लेषण शुरू कर दिया।
एयर बेस काबुल के पास स्थित है और अब वीरान हो गया है, जो अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी का एक अवशेष है। पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की अंतिम टुकड़ी के बेस छोड़ने से ठीक पहले भारतीय वायु सेना के परिवहन वाहक C-130 ने बगराम के लिए तीन उड़ानें भरी। बगराम काबुल से लगभग 25 किमी।
आधिकारिक बयान के अनुसार अफगानिस्तान के लिए उड़ानों इस लिए भरी गयी ताकि वह से राजनयिकों और भारतीय सैन्य विशेषज्ञों को निकला जा सके। क्योंकि तालिबान सेनाएं राजधानी और आसपास के स्थानों की ओर बढ़ रही थीं वही अफगानिस्तान राष्ट्रीय सेना (एएनए) उन्हें रोकने का प्रयास कर रही है। लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मीडिया ने कुछ अलग कहानी सुनाई।
मीडिया ने बताया कि भारतीय वायुसेना के विमान शनिवार और रविवार को एक विशेष मिशन पर थे। अफगान सरकार के अनुरोध पर, उसने कथित तौर पर 122 मिमी की तोप के 40 टन गोला-बारूद गिराए और अगले दिन नहीं उतना ही खेप पहुंचाया। दो सी-१३० विमानों को सेवा में लगाया गया तहत। गौरतलब है कि अफगान नेशनल आर्मी 122 मिमी की क्षमता वाली आर्टिलरी गन का उपयोग करती है।
प्रमुख पाकिस्तानी अखबार ने दावा किया कि भारतीय अधिकारियों को निकालने के लिए विमानों ने जयपुर और चंडीगढ़ से उड़ान भरी। इसमें कहा गया है कि काबुल की सड़कों पर भारतीय हथियारों से लदे ट्रक भी देखे गए।
पाकिस्तान में संचालित एक मीडिया ने बाकायदा विमान मार्ग भी जारी किया और कहा कि बगराम तक पहुंचने के लिए भारतीय वायुसेना के विमानों ने पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से बचने के लिए एक लंबा रास्ता तय किया।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, अफगानिस्तान को भारत द्वारा गोला-बारूद दिया जाना कोई नयी बात नहीं है। 90 के दशक के मध्य में भारत ने अफगानिस्तान के उत्तरी गठबंधन को भारी सैन्य सहायता प्रदान की थी जो तालिबान मिलिशिया से लड़ रहे था। हथियारों और गोला-बारूद के अलावा, भारत ने दवाएं, लड़ाकू वर्दी और धन भी दिया था।
अमेरिका में 9/11 के हमलों से दो दिन पहले अल कायदा द्वारा मारे गए अफगान कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने हाल ही में अमेरिकी सैनिकों के देश छोड़ने की संभावना पर चिंता व्यक्त की और चेतावनी दी कि अमेरिका सेना का जल्दबाज़ी में अफगानिस्तान छोड़ने से “गृह युद्ध” होगा। उन्होंने पिछले साल अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते की भी निंदा की और इसे एक गलती बताया।
ऐसा समझा जाता है कि वह तालिबान मिलिशिया को अहमद मसूद और अफगान सेना कड़ी टक्कर देंगे। तालिबान ने दावा किया है कि उसने अफगानिस्तान के 80 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर कब्जा कर लिया है और राजधानी पर कब्जा करने के लिए काबुल की ओर बढ़ रहे है।