लव कुमार मिश्र
राम जन्मभूमि के लिए प्रयास तो पांच सौ साल से भी ज्यादा चला,लेकिन यह एक जन आंदोलन का रूप २५ सितंबर १९९० से अरब महासागर के किनारे सौराष्ट्र में सोमनाथ मंदिर के विजय द्वार से नौ बजे शुरू हुआ और मैं भी भाग्यशाली रहा, सोमनाथ से अयोध्या की प्रारंभिक ऐतिहासिक यात्रा में।
उस समय मै सोमनाथ से २०० किलोमीटर दूर राजकोट, जो सौराष्ट्र कच्छ की राजधानी रही थी, में अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में विशेष प्रतिनिधि था। यात्रा के पहले कई बार सोमनाथ वेरावल जा चुका था। इस तटीय क्षेत्र में भयंकर आंधी तूफान को रिपोर्ट करने जाना पड़ता था। समीप ही विश्व प्रसिद्ध सासन गिर जंगल में शेरों का घर भी है। १९८४ से १९८६ के बीच सुखा पड़ा, पानी और चारा का संकट हुआ था, मालधारियों ने अपने गाय भैंस भी जंगल में छोड़ दिए थे जो सिंह समुदाय के लिया खतरा था।
मै राजकोट से २४ सितंबर की शाम ही सोमनाथ पहुंच गया था। दिल्ली और बॉम्बे से भी दर्जनों पत्रकार पधार चुके थे। हम लोग सुबह में मंदिर मे जाकर पूजा की। श्री लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन ने भी पूजा की। अडवाणी जी ने एक संक्षिप्त व्यक्तव्य दिया, यात्रा का उद्देश्य बताया और विजय द्वार पर रथ पर सवार हो गए।
आडवाणी की रथ यात्रा के स्वागत में प्रभास पाटन,वेरावल,केशोद,चीरवाड़,जूनागढ़, जेतपुर,गोंडल,में पूरे राष्ट्रीय मार्ग पर जगह जगह तोरान द्वार लगें थे, सैकड़ों महिलाए नारियल और आरती के साथ स्वागत कर रहे थे। शाम में आडवाणी जी का रथ सरदार बाग स्थित ऐतिहासिक सर्किट हाउस में विश्राम के लिए रुका। आडवाणी जी एक नंबर के कमरे में विश्राम के लिए गए और तुरंत ड्राइंग हाल में जमा पत्रकारों को संबोधित किया। भोजन उपरांत वे बीजेपी के स्थानीय नेतृत्व जिसमे चिमन भाई शुक्ल, वजू भाई वाला, केशू भाई पटेल रहें के साथ रेस कोर्स में आइस क्रीम भी खाए।
उन्होंने बताया उन्हे सिनेमा भी देखने का शौक है और याद दिलाई श्री अटल बिहारी वाजपई के साथ दिल्ली के कनॉट प्लेस में एक हाल में पिक्चर देखने जाते थे। स्मरण हो की राजकोट का सर्किट हाउस वही जगह है जहां आजादी के बात जूनागढ़ शासक की तरफ से जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता और कैबिनेट सचिव बी पी मेनन के बीच डोक्यूमेंट ऑफ असेसन पर सिग्नेटियर हुए और जूनागढ़ भारत का अंग बना था।
जूनागढ़ के नवाब केशोद हवाई अड्डे से कराची भाग गए। अगले सुबह २६ को रथ अहमदाबाद (२१० किलोमीतर) के लिए निकली। राजकोट से निकलने पर कुआवड़ा,आजी पुल,चोटिला,मूली, सुरेन्द्र नगर,लेबडी,धंधुका और धोलका होते हुए रात्रि में अहमबाबाद पहुंचा। रास्ते भर जगह जगह रथ को रोक कर अडवाणी की भी आरती उतारी गई,गिफ्ट दिए गए।
अडवाणी की यात्रा के पहले ही विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल और प्रविनभाई तोगड़ियां ने जमीन तैयार कर दिया था। गांव और शहर शीला पूजन हुआ, लाखों की संख्या में राम लिखी इंटा निशुल्क दिए गए, भक्ति से प्रभावित राम नाम वाले शीला को गांव के मंदिर में ही प्रतिष्ठित किया गया क्योंकि इसे अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए भी भेजना था।
यदि २०२४ मे भारत राम मय हुए तो इसकी फाउंडेशन १९८९ में हो गया था। शिला पूजन के द्वारा अडवाणी का रथ एक महीने के बाद बिहार के उत्तर क्षेत्र समस्तीपुर में रोक दिया गया जब अडवाणी को रात में गिरफ्तार कर बंगाल और दुमका की सीमा पर पहाड़ी पर स्थित मसनजोर इरिगेशन बंगला में अस्थाई जेल में भेजा है। यह यात्रा ३० सितंबर को अयोध्या पहुंचने वाली थी। बीजेपी जो विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को समर्थन दे रही थी, ने अपना समर्थन वापस ले लिया, सरकार भी गिर गई।
राम मंदिर निर्माण का दूसरा चरण १९९२ रहा, जब ६ दिसंबर को विवादित ढांचा गिराए गए,बीजेपी की राज्य सरकारों को डिस्मिस किया गया,दंगे और हिंसा हुए। मै इस विवाद में भी पड़ा। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मुझ को भी अयोध्या प्रकरण के लिए जांच कर रही विशेष न्यायालय में गवाही के लिए पेश किया। इस षडयंत्र वाले मामले में अडवाणी मुख्य आरोपी रहे। दो साल से भी अधिक लगा कोर्ट में गवाही। गवाहों को नियामनसुर तुरत निर्धारित यात्रा भत्ता मिलना चाहिए था। लेकिन आज तक एक पैसा नहीं दिया गया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और वर्त्तमान में पटना (बिहार) में निवासरत है )