बांग्लादेश को मान्यता देने के लिए जनसंघ ने अगस्त 1971 में सत्याग्रह शुरू किया था जिसका देश भर में व्यापक असर हुआ था।
बारह दिन तक चले इस आंदोलन में हजारों कार्यकर्ता गिरफ्तार भी हुए थे। सत्याग्रह के आखिरी दिन 1200 महिलाओं और बच्चों समेत करीब 10 हजार कार्यकर्ता जेल गए थे। इस में आंदोलन देश भर से कार्यकर्ता दिल्ली पहुंचे थे।
इसी आंदोलन और गिरफ़्तारी का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने दो दिन के बांग्लादेश दौरे पर नेशनल डे के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए किया था जिससे देश में राजनीतिक भूचाल आ गया। मोदी विरोधी सक्रिय हो गए और शुरू हुआ सोशल मीडिया में आलोचना का दौर। लेकिन शायद उन्हें उस सत्याग्रह के बारे में जानकारी ही नहीं थी, जिसका मोदी जिक्र कर रहे थे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने तो यहाँ तक कह दिया कि , ‘‘अंतरराष्ट्रीय ज्ञान: हमारे प्रधानमंत्री बांग्लादेश को भारतीय ‘फर्जी खबर’ का स्वाद चखा रहे हैं। हर कोई जानता है कि बांग्लादेश को किसने आजाद कराया।’’ कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी निशाना साधते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘संपूर्ण राजनीतिक विज्ञान’ करार दिया।
आँख मूँद कर आलोचना करने वालों को नहीं पता था कि पीएम मोदी जिस सत्याग्रह के बारे में बात कर रहे हैं, पीएम के समर्थक उसकी पूरी जानकारी सोशल मीडिया पर रख कर दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने १२ अगस्त के संस्करण में लिखा कि हलकी बूंदा बांदी के बाद भी जनसंघ के कार्यकर्ता अपने स्थान से हिले नहीं और पुरे अनुशासन के साथ तय रूट के अनुसार रैली में शामिल हुए। वे पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या ख़ान के विरुद्ध नारे लगा रहे थे।
जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत रूस और अमेरिका के दबाव के कारण बांग्लादेश को मान्यता नहीं देना चाहता है। कार्यकर्ताओ को जेल ले जाने १२० बसों की व्यवस्था की गयी थी। कुछ लोगो को नेशनल स्टेडियम में रखा गया था जहा नौ मजिस्ट्रेटो के सामने उन्हें पेश किया गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी आंदोलन का जिक्र कर रहे है जिसमे वे शामिल हुए थे और जेल गए थे। आलोक मिश्रा नाम के ट्विटर यूजर ने 1978 में लिखी गई एक किताब का बैक कवर शेयर किया है, जिसमें बांग्लादेश के निर्माण के लिए चले आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका का जिक्र है।
उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, “पीएम नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के निर्माण के लिए सत्याग्रह में भाग लेने और इसके लिए जेल जाने का ढाका में ज़िक्र क्या किया। उनके आलोचकों के पेट में दर्द हो गया। संदेह का माहौल खड़ा किया जाने लगा। इन आलोचकों को 1978 में प्रकाशित इस किताब के बैक कवर को देखकर मायूस होना पड़ेगा।”
उन्होंने आगे लिखा, “इस किताब के बैक कवर पर तब आरएसएस के युवा प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी का जो परिचय है, उसमें साफ तौर पर बांग्लादेश के निर्माण के लिए चले आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका का जिक्र है। जिन्हें गुजराती नहीं आती, उनके लिए चौथे पैराग्राफ का गुजराती अनुवाद आगे दे रहा हूँ।”
आलोक मिश्रा ने गुजराती अनुवाद देते हुए लिखा, “आपातकाल के बीस महीने, सरकारी तंत्र की नाकामयाबी को साबित करते हुए भूगर्भ में रहकर काम किया और संघर्ष प्रवृति को चलाए रखा। इससे पहले बांग्लादेश के सत्याग्रह के समय तिहाड़ जेल होकर आए।” इसे पढ़ने के बाद शर्म आए, तो बिना तथ्य जाने विवाद पैदा करना छोड़ देना चाहिए मोदी के आलोचकों को।”
आश्चर्य के विषय है कि जिस सत्याग्रह के लिए बांग्लादेश जनसंघ के नेताओ को धन्यवाद दे रहे है उसे मोदी विरोधी शक्तिया खास कर कांग्रेस के नेता स्वीकार करना नहीं चाहते।
यहाँ तक बांग्लादेश ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रशस्ति पत्र दे कर जनसंघ के नेताओ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित किया। प्रशस्ति पत्र में कहा गया है, “बांग्लादेश के लोग हमेशा अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के कारण का समर्थन करने और बांग्लादेश और भारत के बीच दोस्ती को मजबूत करने के लिए किए गए महत्वपूर्ण योगदान को याद रखेंगे।”