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लव कुमार मिश्र
पटना, अगस्त 12
दक्षिण में कर्नाटक,पश्चिम में गोवा और महाराष्ट्र,सुदूर उत्तर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में अश्वमेध का घोड़ा रौंदता हुआ गंगा किनारे पटना पहुंचा,लेकिन यहां गंगा, सोन और पुनपुन के दलदल में फंस गया।
पटना तो अशोक की राजधानी रही और वहां इतिहास में चाणक्य जैसे राजनीति के कुशल नेतृत्व की पैदाइश है,देश के समसामयिक घटनाचक्र में चाणक्य के रूप में ख्याति प्राप्त नेता को जरासंध की धरती में पैदा एक विद्युत अभियंता के बाद नेता बने नीतीश कुमार ने अपने आपको सत्तू और लिट्टी चोखा वाले चाणक्य के रूप में बड़ी लकीर खींच दिया है।
नीतीश कुमार जो कभी विश्वनाथ प्रताप सिंह,देवी लाल,अटल बिहारी वाजपेई के साथ सहयोगी रह चुके हैं,नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों के समक्ष २०१३ में रखी खाने की थाली खींच ली थी,और २०२२ में इनके १६ सहयोगियों को बिना नोटिस दिए ,कुर्सी से बेदखल कर दिया,२६ जून २०१३ को भी ऐसा ही किया था।
उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन को दुख है एक दिन पहले मुख्यमंत्री उनके साथ तीन बैठक की मुख्य अतिथि थे। जिस दिन सत्ता से बेदखल हुए, दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मंत्री थे और जब १.२० घंटा बाद पटना के जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर उतरे तो, भूतपूर्व हो चुके थे।
नीतीश कुमार २०१३ में साम्प्रदायिकता के बहाने बीजेपी से अलग हुए और जुलाई २०१७ में भ्रष्टाचार के नाम पर आरजेडी को अलग किया था। इस बार उनकी अंतरात्मा फिर जागी। उनके पूर्व सचिव, उनके जिला के और स्वजाति श्री राम चंद्र प्रसाद सिंह पर आरोप लगा। बीजेपी उनकी पार्टी को तोड़ने की योजना बना रही है और उनकी सरकार को अपदस्थ किया जा रहा है।
इस बार कोई सिद्धांत की बात नही थी। बीजेपी द्वारा महाराष्ट्र स्टाइल षड्यंत्र के द्वारा इनके पूर्व सचिव को बिहार का एकनाथ शिंदे बनाया जा रहा था।
नीतीश कुमार शपथ लेते ही घोषणा कर दिए, २०२४ के आम चुनाव में वे नरेंद्र मोदी को टक्कर देंगे, देश के सारे विपक्ष को इकठ्ठा करेंगे , लेकिन खुद प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे।
लेकिन नीतीश कुमार को निराशा लगी क्योंकि तीन दिनों के बाद भी उत्तर, दक्षिण,पश्चिम एवं पूर्व के किसी भी गैर बीजेपी नेता ने उनके निर्णय का समर्थन नहीं किया। सिर्फ पुनः मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी।
कांग्रेस के प्रवक्ता श्री संदीप दीक्षित ने तो विपक्ष के नेता के रूप में राहुल गांधी को ही बताता।
ऐसा लगता है नीतीश जी को अब बिहार की ही राजनीति करनी होगी, उन्हे मुख्यमंत्री के रूप में लालू जी कितना संरक्षण और स्वायत्त दे सकते हैं, आने वाला समय ही बता सकता है।
नीतीश जी को स्मरण होगा,उन्होंने पूर्णिया में २०२० विधान सभा चुनाव प्रचार में भाषण देते हुए कहा था, यह मेरे लिए अंतिम चुनाव है। फिर २०२४ में विपक्ष के राष्ट्रीय नेता की भी तैयारी!