बूटा सिंह: जिन्होंने राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में प्रमुख भूमिका निभाई

आर कृष्णा दास

अपने घटते राजनितिक प्रभाव और हिंदू भावनाओं को ठेस ना पहुंचे इसलिए 1989 में कांग्रेस पार्टी अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर शिलान्यास और शिला पूजन को रोकने में कोई रूचि नहीं दिखाई।

13 अक्टूबर को, लोकसभा में गैर-भाजपा दलों द्वारा एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया जिसमे कहा गया कि सरकार शिलान्यास की अनुमति नहीं दे और विहिप को “कार्यक्रम रद्द करने” के लिए कहे । कांग्रेस पार्टी और राजीव गाँधी ने इस प्रस्ताव को नज़रअंदाज़ कर दिया।

इस मामले से निपटने की जिम्मेदारी तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह को दी गयी। बूटा सिंह, जिनका 2 जनवरी को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया, ने कांग्रेस में एक ऐसे व्यक्ति के रूप मै पहचान बनाई जो इंदिरा या राजीव गांधी के लिए कुछ भी कर सकते थे।

“वे (बूटा सिंह) राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास की व्यवस्था करने में प्रमुख भूमिका निभाई, जिससे आम चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय (कांग्रेस पार्टी से ) अलग हो गया,” एस एस गिल ने अपने संस्मरण द डायनेस्टी में लिखा है।

उन्होंने स्वर्ण मंदिर के पुनर्निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गिल ने लिखा कि अमृतसर में पवित्र और ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर को भारी नुकसान पहुंचाने वाले ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद पूरा सिख समुदाय स्तब्ध और नाराज था। पार्टी के कुछ नेताओ और सरकार के कुछ वर्गों ने इस आघात के प्रति घोर असंवेदनशीलता दिखाई।

सरकार ने अपनी कार्रवाई को सही ठहराने की चिंता में एक प्रचार अभियान चलाया, जिसने यह धारणा बनाई कि सभी सिख अलगाववादी थे। जबकि सिख सैनिक, जो कि ज्यादातर नए भर्ती थे, इस सदमे को सहन नहीं कर सके और विद्रोह की ओर बढ़ने लगे। बिहार के रामगढ़ में सिख रेजिमेंटल सेंटर में विद्रोह हुआ, जहां कमांडेंट ब्रिगेडियर एस.एस. पुरी को उनके सैनिकों ने गोली मार दी थी।

“जब मैं सूचना और प्रसारण मंत्रालय का सचिव था, तब यह सब हुआ था। 11 जून को मैं स्वर्ण मंदिर में भारतीय और विदेशी पत्रकारों के साथ गया तब मैंने सिखों को ध्वस्त अकाल तख्त में परेशान देखा, और उन्हें ये कहते सुना कि हम सब खो चुके हैं; ” गिल ने कहा।

सरकार ने स्वर्ण मंदिर को फिर से बनाने का फैसला किया । तत्कालीन लोक निर्माण और आवास मंत्री बूटा सिंह को जिम्मेदारी दे गयी । चूंकि सिख एक सरकारी एजेंसी के साथ सहयोग करने के लिए सबसे ज्यादा आसक्त थे, उन्होंने संप्रदाय के नेता को अपने प्रभाव में लिया और कार सेवा (काम की सेवा) शुरू कर दी। कार सेवा के बहाने संरचना वास्तव में ठेकेदारों द्वारा बनाई गई थी।

बाद में इसे सिख समुदाय के लोगो ने ध्वस्त कर दिया गया और धर्मनिरपेक्ष सिखों की स्वैच्छिक सेवा के द्वारा पुनर्निर्माण शुरू किया गया।

बूटा सिंह ने ज्ञानी जैल सिंह को राजीव के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई करने से रोकने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भारतीय राजनीति में एक खुला अध्याय था।

बूटा सिंह ने ज्ञानी के सबसे भरोसेमंद सलाहकारों में से एक को अपने पक्ष में कर लिया और उनके माध्यम से राष्ट्रपति का मन बदलने का काम किया। उन्होंने पंजाब में बरनाला सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके बाद राज्य में आतंकवादी गतिविधि बहुत तेजी से बढ़ी।

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