बेटी होगी छपरा में लालू प्रसाद की राजनीतिक उत्तराधिकारी
लव कुमार मिश्रा
पटना, अप्रैल 20
मार्च १९७७ में लालू प्रसाद यादव ने २९ साल की उम्र में छपरा से ४.८६ लाख मत प्राप्त कर लोक सभा में प्रवेश किया था वही कांग्रेस के पराजित सिटिंग सांसद रामशेखर सिंह को सिर्फ ४१६०९ वोट मिले थे।
बाद में १९८० में श्री यादव नौ हजार वोट से सत्यदेव सिंह से हार गए। मैं अंग्रेजी दैनिक द सर्चलाइट में नौकरी करता था, पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ जिसके अध्यक्ष श्री यादव रहे,का सदस्य भी था। हम लोग लालू जी, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय के छात्र, जगदीश शर्मा और एक साले साहेब छपरा जाने के लिए महेंद्रू घाट से रेलवे के पानी जहाज से साधारण दर्ज़ का टिकट लेकर गंगा नदी की उत्तर साइड में पहलेजा घाट पहुंचे। वहां से सोनपुर और फिर छपरा के लिए साठ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से एक खुली साधारण जीप लिया।
बीएलडी के उम्मीदवार लालू जी, चौड़े मोहरे वाला पैजामा तथा झूलता हुआ कमीज पहने थे। उनका आश्रय श्री राम बाबू राय के यहां होता।उन्ही के आंगन में हमलोग खुले आसमान के नीचे खटिया (चौकी नही) पर रात में सोते। उम्मीदवार देर रात तक दरवाजे दरवाजे घूमते, कहीं पूड़ी सब्जी, कहीं चावल दाल भोजन हो जाता।
कांग्रेस उम्मीदवार रामशेखर सिंह राजपूत थे। उनकी जात के वोटर्स भी बहुत थे। लालू जी राजपूत घरों में भी जाते। घर के बुजुर्ग माता को चरण स्पर्श कर आशीर्वाद भी लेते और पैसे भी। देर रात कभी तो आधी रात के बाद अपने थिया पर सोने के लिए वापस आते, भयानक गर्मी में भी बीना पंखा के सो जाते।
हमलोग निर्वाचन अधिकारी से सर्टिफिकेट लेकर उसी रास्ते महेंद्रू घाट उतरे। इस बार एंबेसडर टैक्सी ली। महावीर मंदिर और फिर वेटेरिनरी कॉलेज का चपरासी क्वार्टर्स।
आज ४५ वर्षीय रोहिणी भी उसी छपरा (जो २००८ के बाद सारण लोकसभा सीट कहलाती है) से चुनाव मैदान में है। 10 सर्कुलर रोड से चुनावी यात्रा फर्चुनर और अति अध्यातुनिक वातानुकालित गाड़ियों के समूह से शुरू होती है। उम्मीदवार जेपी सेतु से निर्वाचन क्षेत्रों में अपने समर्थकों के suv के साथ प्रवेश करती हैं, गांव में नही रुकती है, शाम में फिर पटना में सर्कुलर रोड बंगला में विश्राम।
एक बार छपरा बस स्टैंड के पास एक प्रभावशाली नेता के होटल में विश्राम की, उन्ही के पार्टी के एक विधायक का भी आलीशान निवास भी है। वातनकुलित एसयूवी से ज्यादा समय बाहर रहने से स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव रहता है।
१९७७ में इनके पिता जी के जीप पर माला नही के बराबर,आज इनकी और साथ वाले suv पर माला और फूल पूरा ढका रहता है। लालू जी को मिनरल वाटर बॉटल नही मिल पाता था १९७७ में।
मौसम वही है, छपरा वही है, १९७७ में पिता जी उम्मीदवार थे, आज पुत्री है !
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और पटना में निवासरत है)