चीन में ऊईगर मुस्लिमों के अत्याचार पर क्यों मौन है इस्लामिक कट्टरपंथी !

आर कृष्णा दास

कश्मीर के मामले में पाकिस्तान और हफ़ीज़ सईद का समर्थन करने वाली चीन ऊईगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी साधे हुए है वही इस्लामिक संगठन भी आश्चर्यजनक रूप से मौन है।

वर्ष २०१४ में आतंकी सरगना अबू बक्र अल-बगदादी ने २० दुश्मन देशो की सूची जारी किया जिसमे चीन भी शामिल था। बगदादी अक्टूबर २०१९ में मारा गया और सम्भवता इसके बाद ऊईगर मुस्लिमों की चिंता करने वाला कोई बचा नहीं। इस्लामिक स्टेट, अल-क़ायदा, तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे जिहादी संगठनों ने चीन को अपना “दुश्मन” घोषित कर दिया है।

लेकिन क्या ये महज़ औपचारिकता है या चीन जैसे-जैसे दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है वैसे ही जिहादी संगठनों का नया निशाना बनता जा रहा है। चीन ने अपनी विदेश नीति और घरेलू नीतियों के कारण पिछले कुछ सालों में तेजी से इस्लामिक दुनिया पर अपने प्रभुत्व को बढ़ाया है। दक्षिण एशियाई देशों से लेकर मध्य एशियाई और अफ़्रीकी देशों तक में चीन ने व्यापारिक रिश्तों के आधार पर अपना वर्चस्व जमाया है। वह इन इस्लामिक देशों में राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और यहाँ तक कि सांस्कृतिक प्रभाव भी बढ़ाता जा रहा है लेकिन इस्लामिक जिहादी संगठनों की चिंताएं बढ़ने की बजाये मौन है।

चूंकि चीन धीरे-धीरे एक वैश्विक सुपरपावर बनता जा रहा है, उसके कारण विदेशों में अब उसका प्रभाव अप्रत्याशित तौर पर बढ़ चुका है। यह प्रभाव इतना ज़्यादा है कि शिंजियांग में ऊईगर मुस्लिमों पर बेतहाशा अत्याचार के बावजूद इस्लामिक दुनिया की ओर से चीन के खिलाफ़ एक शब्द सुनने को नहीं मिलता है। यहाँ तक कि अफगानिस्तान में तो चीन ने तालिबान के साथ आधिकारिक स्तर पर वार्ता तक की है।

इस्लामिक कट्टरपंथी भी चीन का विरोध नहीं कर पा रहे है हालांकि अपना अस्तित्वा बनाए रखने वे छिटपुट घटनाओ को अंजाम दे रहे है। पाकिस्तान में चल रहे चीनी प्रोजेक्ट्स के कर्मचारियों और अफगानिस्तान में चीनी नागरिकों पर हमला होने की घटनाएँ सामने आई हैं। जून २०१७ में आतंकवादियों ने दो चीनी शिक्षकों की हत्या कर दी। लेकिन इसे चीन के खिलाफ हमले के रूप में नहीं देखा जा सकता।

वर्ष २०१५ में बैंकाक में हुए एक आतंकवादी हमले में 20 लोग मारे गए थे जिसे बताया गया के वह चीनी पर्यटकों को निशाने पर लेकर किया गया था। लेकिन ऐसे नहीं था क्यूंकि वह हमला थाईलैंड पर था जिसने उसी वर्ष करीब 100 ऊईगर मुस्लिमों को निर्वासित किया था।

चीन में ऊईगर मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे अत्याचार से नागरिको में काफी रोष है जिसके कारण इंडोनेशिया, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देशों में सक्रिय कट्टरपंथी संगठनो को दिखावा करना पड़ रहा है कि वे चीन के विरुद्ध लड़ाई लड़ेंगे। कोरोना के समय इंडोनेशिया में चीन-विरोधी सोशल मीडिया पोस्ट्स में इजाफा देखने को मिला था और सुरक्षा एजेंसियों ने एक चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि भविष्य में चीनी लोगों पर देश में हमले भी हो सकते हैं। देश में अगस्त २०२० में एक तथाकथित उग्रवादी संगठन से जुड़े कुछ सदस्यों को गिरफ़्तार किया गया और बताया गया कि वे चीनी दुकानदारों पर हमला करने की योजना बना रहे थे।

पिछले वर्ष जनवरी में चीनी कंपनियों ने पाकिस्तान में अपने कर्मचारियों पर नमाज़ पढ़ने पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद पाकिस्तान के कई मौलवियों और मुफ्तियों ने चीन के खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाई थी। लेकिन वैश्विक इस्लामिक संगठन जो मुस्लिम अधिकार की बात कश्मीर में करते है इस मामले को नज़रअंदाज़ कर दिया।

असल में इस्लामिक संगठनों का चीन की खिलाफ चुप रहना एक रणनीति भी है। अमेरिका ने ऊईगर पर हो रहे अत्याचार को नरसंहार कहा पर इस्लामिक संगठन इस बात का समर्थन करने की बजाये उसका विरोध कर रहे है। आतंकवादी चीन को कमजोर नहीं करना चाहते क्यूंकि उन्हें हर हल में अमेरिका को मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में किसी भी किस्मत में मजबूत नहीं होने देना है।

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