टीम समाचार रिवेटिंग
कांग्रेस पश्चिम बंगाल का चुनाव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के साथ लड़ रही है जिसने राहुल गांधी को केरल में उनके भाषण के लिए न सिर्फ लताड़ा है बल्कि राज्य में उनको पटकनी देने की तैयारी में है।
इसे राजनीतिक अवसरवाद कहें या विडंबना, दो राजनीतिक दल संयुक्त रूप से एक राज्य में चुनाव लड़ रहे है और दूसरे राज्य में एक दूसरे के खिलाफ पुरे जोर शोर के साथ आमने सामने है । केरल में, कांग्रेस सत्तारूढ़ सीपीएम की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है। केरल और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों में चुनाव अप्रैल में होने जा रहे हैं।
अभी पांच दिन पहले, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की सहयोगी सीपीएम ने केरल में राहुल गांधी के भाषणों की कड़े शब्दो में निंदा की है। राहुल गांधी ने अपने भाषणों में वामपंथी दलों को आड़े हाथो लिए था। सीपीएम ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कांग्रेस नेता की न सिर्फ निंदा की बल्कि उन्हें भाजपा का एजेंट तक कह दिया।
कम्युनिस्टों के साथ कांग्रेस का चुनावी विरोधाभास ने पार्टी को एक नई बहस छेड़ दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता जिन्होंने संगठन को “मजबूत” करने और पुनर्जीवित करने की चिंता की थी ने कांग्रेस एक इस कदम पर अपना विरोध दर्ज कराया है।
आनंद शर्मा ने कहा कि पार्टी ‘सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई में चयनात्मक नहीं हो सकती है। हमें सांप्रदायिकता के हर रूप से लड़ना है।’ शर्मा ने कहा कि आईएसएफ जैसी कट्टरपंथी पार्टी के साथ गठबंधन के मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए थी और उसे कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) द्वारा अनुमोदित होना चाहिए था।
वहीं आनंद शर्मा ने कोलकाता में संयुक्त रैली में भाग लेने के लिए पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख अधीर रंजन चौधरी से स्पष्टीकरण मांगा, जहां आईएसएफ नेता मौजूद थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी उपस्थिति और समर्थन कष्टदायक और शर्मनाक थी।
हालांकि चौधरी ने कहा कि पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने स्वयं से निर्णय नहीं किया है। सीडब्ल्यूसी पार्टी का निर्णय लेने वाला सर्वोच्च निकाय है जो पार्टी के महत्वपूर्ण फैसले लेता है। बता दें कि शर्मा सीडब्ल्यूसी के सदस्य और राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता हैं