न्यूज़ रिवेटिंग
प्रान्त-प्रान्त की आपातकाल अत्याचारों की सत्यकथाओं को पढ़कर, हृदय व्यथा से भर जाता है। मन में अनेेक प्रश्न उठते हैं। भगवान महावीर, गौतम बुद्ध और महात्मा बुद्ध गांधी के इस देश में क्या लोग इतने अत्याचारी और हिंसक बन सकते हैं ? क्या मनुष्य मनुष्य के साथ इतना कू्रर व्यवहार कर सकता है ? क्या मनुष्य पशु से भी हीनतर बन सकता है?
सत्तापिपासु मनुष्य अपनी मानवता खो बैठता है। रावण, कंस, जरासंघ आदि के चरित्र इसी तथ्य को विशद करते हैं। सत्ताधारियों की अपेक्षा उनसे ऊष्णता उनसे ऊष्णता प्राप्त बालकृष्ण अधिक दाहक होते हैं। सत्ताधारियों की अपेक्षा उनके मंत्री तथा नौकर-चाकर अधिक कू्ररता दिखाते हैं।
परंतु यहां यह कहना आवश्यक है कि शासकीय अधिकारियों मे और पुलिस अधिकारियों में भी आपातकाल से बिल्कुल असहमत और सौजन्य दयाशील लोगों के भी उदाहरण है।
बचाया नाना जी को:
दिल्ली में 25 जून 75 का आम सभा का कार्यक्रम यशस्वी हुआ था। लोकसंघर्ष समिति के सब कार्यकर्ता प्रसन्न थे। नानाजी का उत्साह अपार था। अनेक कार्यकर्ताओं से वे घिरे थे। उनसे महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत हो रही थी। जब सब जाने को हुए तो एक अपरिचित व्यक्ति धीरे से नानाजी के पास आया। और उसने उन्हे कहा ‘‘ नानाजी, आज रात्रि में सोने के लिए आप कहीं अन्यत्र चले जायें तो ठीक रहेगा। आज की रात्रि कुछ संकट लेकर आ सकती है। ‘‘जैसा सतर्क रहिएगा।’’
बिना अपना अता-पता बताये, वह व्यक्ति भीड़ में गायब हो गया। नानाजी कुछ सोच में पड़ गयेे। वैसे राजकीय क्षेत्र की हवा दिन-प्रतिदिन अधिक तप रही है, इसका उन्हें अनुभव हो रहा था। पर एकदम से आपातकाल घोषित हो जाने की कल्पना उन्होंने नहंी की थी। फिर भी उन्होंने नित्य के स्थान पर न जाने का निर्णय लिय। वे डाॅक्टर जैन के यहां पहुंचे। उन्हीं के यहां वे सोये। सुबह बहुत तड़के उन्हे हवाई अड्डे पर जाना था। जयप्रकाश पटना जाने वाले थे। उनसे कुछ आवश्यक बातें करनी थी। सुबह चार बजे उठकर नानाजी अकेले ही हवाई अड्डे की ओर चल दिये। उन्हें सस्ते में ही कुछ विचित्र परिस्थिति का अनुभव हुआ।
वे हवाई अड्डे पर पहुचें। उन्होने अपनी कार योग्य स्थान पर खड़ी की। चारो ओर बहुत अधिक संख्या में पुलिस नजर आ रही थी। वे कुछ ठिठक कर देखने लगा। तब तक एक पुलिस अधिकारी उनके पास आया और धीरे से बुदबुदाया। आप ही तो नानाजी देशमुख है ? नानाजी ने कहा हां क्यों भाई ? अधिकारी ले कहा जब तक आपको काई वरिष्ठ अधिकारी देखे, आप जल्द से जल्द यहाँ से निकल जाइए। जयप्रकाश कभी के पकडे गए और न मालूम कहा भेज दिये गए। आपका 1 मिनट से भी ज्यादा रुकना यहां खतरे से खाली नही है।
नानाजी कार की ओर लपकें। तब जयप्रकाश ने निजी सचिव उनके पास आये। एक पत्र नानाजी के हाथ में देते हूए उन्होने कहा, गिरफ्तारी से बचिये। भूमिगत आन्दोलन चलाइये। यही जयबाबू का आपके लिए संदेश है। किसी प्रकार पुलिस को टालते हुए नानाजी कार में बैठे और पार हो गए।
हमें आपको पकड़ना नही:
एक शाम संघ के प्रचारक और भूमिगत कार्यकर्ता चमनलाल स्ट्रीट थाने के पास एक दफ्तर से निकलें । इतने में उन्हे एक आवाज सुनाई पड़ी, नमस्ते चमनलालजी ! वे चैकन्ने हो गये और नमस्तेजी नमस्ते करतें हुए आगे बढ़ गए। अब पहले वाली आवाज कड़क हो गयी । चमनलाल, रुक जाओ थाने चलो।
चमनलाल रुके और उन्होने बड़े भोले भाव से कहा, एक ओर तो आप नमस्ते करते है और दूसरी तरफ गिरफ्तार करने कि बात। यह चर्चा चमनलालजी की दो पुलिस अधिकारियोें के साथ हो रही थी । पुलिस अधिकारियों ने कहा, आपकी इस इलाक मे आने की हिम्मत कैसे हुई।
चमनलालजी ने कहा, मुझे जाने दीजिए। मैं आईदां कभी इधर नहीं आउंगा।
अब दोनो पुलिस अधिकारियों ने अपना स्वर बदला और कहा, चमनलालजी बुरा मत मानिए। सब थानो में आपके नाम वारंट है और फोटो है, और आप ही है कि ठीक पार्लियामेंट के थाने के सामने से खुले आम गुजर रहे है। हमें आपको गिरफ्तार नही करना है। हमने आपको सचेत किया है।
चमनलाल ने कहा आप जैसे सहानूभूति रखने वाले लोग है, तभी तो हिम्मत होती है भाई। ऐसा कहकर नमस्ते करते हुए चमनलालजी आगे बढ़ गए।
कोतवाली में स्वागत:
2 जनवरी 76 को कु. रजंना खानवलकर कु. मीनू चतुर्वेदी तथा कु. ज्योति सोलांकी तथा अनिल शर्मा के सहयोग से ग्वालियर में बच्चों का एक अभिनव कार्यक्रम हुआ। इन बच्चों ने हमारे माता पिता को रिहा करो, आदि के नारे लगाते हुए शहर के व्यस्ततम क्षेत्र राजवाड़े पर चक्कर लगाना शुरु किया।
पुलिसवालो ने बच्चों को थाने के अंदर बुलाया और बाकायदा नास्ता करवाने के बाद अपनी गाड़ी से वापस भिजवा दिया।