इसे एक विडंबना कहें या ओछी राजनीति, पंजाब और हरियाणा के किसानों ने उन मुद्दों को लेकर 2008 में आंदोलन किया था जिसका आज वे विरोध कर रहे है।
नरेंद्र मोदी सरकार ने कृषि बिल 2020 में जिन विषयो को शामिल किया है उसका एक समय पंजाब और हरियाणा के किसानों ने समर्थन किया था। कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार की परिकल्पना करने वाले कृषि बिलों 2020 का अब वे विरोध कर रहे है और सड़कों पर उतर आये हैं। जबकि किसान लंबे समय से इसकी वकालत कर रहे थे।
द ट्रिब्यून के चंडीगढ़ संस्करण ने 3 अप्रैल, 2008 को समाचार प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था “कॉर्पोरेट को गेहूं खरीदने की अनुमति दी जाये” । भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेतृत्व वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों ने तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। किसानों से गेहूं खरीदने से कॉरपोरेट पर प्रतिबंध लगाने का सरकार के इस कदम का वे विरोध कर रहे थे।
तत्कालीन सांसद शरद जोशी, जो कि किसान समन्वय समिति (केसीसी) के संस्थापक और बीकेयू के भूपिंदर मान, जिनके नेतृत्व में आंदोलन हुआ था, ने उस समय कहा था कि गेहूं की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 1,600 रुपये प्रति क्विंटल थी वही किसान अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य में मात्र 1,000 रुपये प्रति क्विंटल में बेच रहे है।
“किसानों को सरकारी एजेंसियों को कम दरों पर अपनी उपज बेचकर नुकसान क्यों उठाना चाहिए। जोशी ने कहा कि बाजार की ताकतें, न की राजनीति को शासन करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
बारह साल बाद, वही किसान संगठन के नेतृत्व वाले उन्हीं राज्यों के किसान उस कानून का विरोध कर रहे हैं जिसके लिए वे कभी आंदोलन किये थे।
नया कानून किसानों को बिचौलियों (अरिहता) के चंगुल से मुक्त करने के साथ ही एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समितियां अधिनियम) बाजारों से उचित मूल्य पर अपनी पसंद के खरीदार को उपज बेचने की अनुमति देते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 2019 में तत्कालीन केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान ने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से अरहिता प्रणाली समाप्त करने और किसानों को सीधे भुगतान सुनिश्चित करने की मांग की थे जिसका बीकेयू ने समर्थन किया था। नए कृषि कानूनों में इसका प्रावधान किया गया है।