टीम न्यूज़ रिवेटिंग
क्या नई दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में लोगो को जबरदस्ती शामिल किया गया है ? यदि नहीं, तो पंजाब और हरियाणा के कुछ ग्राम पंचायतो को क्यों जारी करना पड़ा बहिष्कार का फतवा।
कुछ ग्रामो से खबर आ रही है कि गरीब ग्रामीणों के लिए पंचायतें जारी कर रहीं हैं फतवे ताकि जो लोग किसान आंदोलन में शामिल नहीं होना चाहते, उन्हें भी जबर्दस्ती शामिल किया जाएगा।
किसान आंदोलन के नाम पर 26 जनवरी को लाल किले पर तथाकथित किसानों द्वारा फैलाई गई अराजकता के विरुद्ध सरकार ने कार्रवाई की थी जिसके बाद प्रदर्शनकारियों ने आम लोगों को अलग-अलग तरीके से निशाने पर लेना शुरु कर दिया है। हरियाणा से लेकर पंजाब तक की खाप पंचायतें अब लोगों पर किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए दबाव बना रही हैं।
यदि वो ऐसा नहीं करते है तो इन पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार करने की धमकियां भी दी गई हैं जो दिखाता है कि अब ये किसान आंदोलन नैतिकता की धज्जियां उड़ा रहा है और लोकतंत्र को चुनौती दे रहा है। आश्चर्य की बात है लोकतंत्र की बात करने वाले आंदोलनकारी न तो इसका विरोध कर रहे है न ही पंचायतो की निंदा।
खाप पंचायतें लोगों पर किसान आंदोलन में शामिल होने का दबाव बना रही हैं। हरियाणा से लेकर पंजाब की 130 से ज्यादा खाप पंचायतें अब किसान आंदोलन को सफल बनाने के लिए दबाव की नीति पर काम करने लगी हैं। वहीं इस मामले में भटिंडा की सरपंच मनजीत कौर ने तो सारे नैतिकता के पैमाने ही ध्वस्त कर दिए हैं, और अपने ही गांव के साधारण लोगों पर किसान आंदोलन में शामिल होने का फैसला थोप दिया है।
पंजाब के वर्क खुर्द की ग्राम पंचायत का इस मामले में काफी कट्टर रुख है। पंचायत ने साफ कहा है गांव के प्रत्येक घर से एक व्यक्ति को दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को मजबूती देने के लिए जाना होगा और यदि किसी भी घर में इस तरह के नियम का पालन नहीं होगा तो उस परिवार को जुर्माने के तौर पर 1,500 रुपए देने होंगे। खास बात ये है कि पंचायत के इन नियम को न मानने वाले परिवार का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। ये एक ऐसा फैसला है जो कि सामान्य गरीब किसानों पर बेवजह का दबाव बना रहा है।
वहीं हरियाणा की कई खाप पंचायतों में बीजेपी नेताओं के शामिल होने पर रोक के साथ ही उनके हुक्के पानी को बंद करने की बात भी कही गई है। ये सभी फैसले तब तक प्रभावी होंगे जब तक मोदी सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त नहीं करती है।
किसानों के कृषि कानूनों का विरोध उस दिन से ढीला पड़ गया है जब तथाकथित किसानों ने वादा खिलाफी करते हुए दिल्ली में रूट से हटकर ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया था। इतना ही नहीं इन तथाकथित किसानों ने लाल किले पर निशान साहब का धार्मिक झंडा लहराया था जो कि एक बेहद ही आपत्तिजनक घटना थी।
इस पूरे प्रकरण में आंदोलन कर रहे इन किसानों की छवि खराब हो गई है। वहीं अब सरकार भी इस मुद्दे पर ताबड़तोड़ कार्रवाई कर रही है, जिसके चलते अब ये किसान असामाजिक खाप पंचायतों व जातिगत कार्ड के जरिये अपने इस आंदोलन को पुनः मजबूती देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर जिस तरीके से लोगों पर किसान आंदोलन में शामिल होने का दबाव बनाया है वो इस बात का संकेत है कि ये किसान आंदोलन सारी मर्यादाएं तोड़ चुका है।