आर कृष्णा दास
जब राज्यपाल सख्त हो जाते है, तो राज्य सरकार के लिए मुश्किले बढ़ जाती है!
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सरकारों ने अपने राज्यपालों को उनकी यात्रा के किये विमान देने से मना कर दिया। ये कोई अपवाद नहीं हैं। राज्यों की “प्लेन” पॉलिटिक्स बरसो से चली आ रही है। जो राज्यपाल राज्य सरकार के कामो पर पैनी नज़र रखते है, उनके पर काटने के किये उन्हें उड़ान भरने से रोकना सबसे अच्छी और सस्ती रणनीति होती है।
यह इसलिए कि राज भवन के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं जिससे वे राज्य सरकार का विमान का उपयोग कर सके। उन्हें सरकार पर आश्रित होना ही पड़ता है।
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के सचिव के रूप में काम कर चुके एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने बताया: “ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं है जो राज्यपाल को राज्य विमान उपयोग करने की सुविधा प्रदान करता है और यह सब मुख्यमंत्री के साथ पारस्परिक संबंधों पर निर्भर करता है।” यदि राज्य सरकार राज भवन के निर्देशों को नज़रअंदाज़ करता है तो यह इस बात का संकेत है कि वह केंद्र के प्रतिनिधि के साथ टकराव के मूड में है।
राज्यपाल केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में जो सरकारे है वह केंद्र में सत्ता में बैठी भाजपा के विरोधी माने जाते है। इस स्थिति में राज्यपाल से टकराव होना स्वाभाविक है। लेकिन कुछ मुख़्यमंत्री अपने कौशल से सम्बन्ध अच्छे बनाये रखते है। पूर्व मुख़्यमंत्री रमन सिंह एक उदहारण है जिन्होंने दस साल केंद्र में कांग्रेस की सरकार के रहते हुई राज्यपाल से कभी टकराव नहीं होने दिया।
पिछले कुछ समय से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में राज्यपाल और सरकार के बीच दूरिया बढ़ गयी है। छत्तीसगढ़ में तो यह चरम पर पहुंच गई जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा आयोजित परंपरागत चाय पर नहीं आये।
राज्यपाल का कई विवादास्पद विधेयकों पर शक्ति बरतने के कारण शायद यह गतिरोध बना। छत्तीसगढ़ के एक विश्वविद्यालय को, जिसके कुलपति राज्यपाल होते है, महीनों से छत्तीसगढ़ सरकार का अनुदान नहीं मिल रहा है। जिसके कारण कर्मचारियों जिसमे चतुर्थ श्रेणी भी शामिल है को अब तक वेतन नहीं मिल पाया है।
अनसुइया उइके और भगत सिंह कोशियारी ने राज्य सरकारों की चुनौती स्वीकार कर ली और नियमित उड़ान से गंतव्य के लिए रवाना हो गए ।
“प्लेन पॉलिटिक्स” आम तौर पर राज्य सरकार के लिए एक हथियार बन गया है और यह दशकों से ऐसा ही चला आ रहा है। लेकिन बिहार में हुई तकरार रोचक है।
बिहार के राज्यपाल डॉ अखलागुर रहमान किदवई के कार्यकाल के दौरान राज्य सरकार विमान देने से इनकार कर रही थी क्योंकि मुख्यमंत्री की पत्नी को परीक्षा में बैठने के लिए मुजफ्फरपुर जाना होता था। एक बार किदवई को यात्रा इसलिए रद्द करना पड़ा क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने शहर में बिगड़ी कानून और व्यवस्था का हवाला दे दिया।
दूसरी बार जब राजभवन ने विमान माँगा तो मुज़फ़्फ़रपुर प्रशासन ने सूचित किया कि हवाई पट्टी पर पानी भर गया और यात्रा रद्द करने का आग्रह किया। कुछ समय पश्चात उसी हवाई पट्टी में मुख्यमंत्री की पत्नी का विमान उत्तरा। इस घटना का किदवई ने कड़ा संज्ञान लिया और सड़क मार्ग से मुजफ्फरपुर चले गए।
उन्ही नाराज़गी के कारण राज्य सरकार ने जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को हटा दिया। नए डीएम को बाकायदा विमान से भेजा गया। किदवई ने बाद में पुराने डीएम को बुलाया और उनके बैच के बारे में पूछा। जब उन्होंने बताया तो किदवई ने कहा: “उस समय यूपीएससी के अध्यक्ष कौन थे?” जब डीएम ने किदवई का नाम लिए तो पूर्व यूपीएससी अध्यक्ष ने चुटकी ली: “क्या मैंने चयन करने में कोई गलती की?”
विमान ही नहीं, यहाँ तक राज्य सरकार ने राज्यपाल को नाव पर भी नहीं चढ़ने दिया। बिहार के प्रसिद्ध छठ पूजा के दौरान, तत्कालीन राज्यपाल गोविंद नारायण सिंह ने पर्यटन बोर्ड के नाव पर सैर करने का कार्यक्रम बनाया ताकि त्यौहार की छठा देख सके । अंतिम समय में राज भवन को सूचना दी गई कि उन्हें कार्यक्रम रद्द करना पड़ेगा क्योंकि मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद और उनके परिवार के सदस्यों ने अचानक नाव की सवारी के लिए पहुंच रहे है।