अविश्वास के बीच भारत चीन सेना की वापसी

आर कृष्णा दास

भारत और चीन 1962 युद्ध के बाद पहली बार पिछले साल गंभीर सीमा विवाद में उलझे जो लगभग नौ महीने बाद शांत होता दिख रहा है क्यूंकि दोनों पक्षों ने बुधवार को लद्दाख में पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी तट से चरणबद्ध सेना की वापसी शुरू कर दी है ।

चीन के रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की नौवें दौर की बैठक के बाद जो सहमति बनी थी, उसी के आधार पर दोनों देशों के फ्रंट लाइन सैनिकों का पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर और दक्षिण से सिंक्रोनाइज-डिसइंगेजमेंट (वापसी) शुरू हो गयी है।

लेकिन क्या पिछले अनुभव को देखते हुए चीन पर भरोसा किया जा सकता है? यदि रक्षा विशेषज्ञों की माने तो इसका जवाब “रक्षात्मक आशावाद” हो सकता है।

और चीन ने इस ओर इशारा भी किया है। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता, वरिष्ठ कर्नल वू कियान ने एक लिखित बयान जारी करते हुए कहा: “हालांकि, तनावपूर्ण गतिरोध को रद्द करना और एक बार में ही शांति और स्थिरता वापस लाना मुश्किल है, लेकिन भविष्य आशाजनक लग रहा है।”

हालांकि, भारत के रक्षा विशेषज्ञों मानते है कि चीन ने कुछ “सकारात्मक” संकेत जरूर दिया है लेकिन उसे इस संकेत को क्रियान्वित भी करना होगा। इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सेना की वापसी का निर्णय चीनी रक्षा मंत्रालय की पहल से हो रहा है न की सत्ताधारी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के जिससे अंतिम निर्णय लेना है।

चीन की CPP शताब्दी मना रहा है और “अगर सेना ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया तो शायद उसे राजनितिक नुकसान देश में हो सकता है ।” विशेषज्ञों ने कहा कि अगर चीनी सैनिक तनाव वाले क्षेत्र से पीछे हटते हैं, तो वे वापस भी आ सकते हैं क्योंकि उन्होंने उस जगह बुनियादी अधोसंरचना बनाया है।

जब तक भारत चीन के साथ सीमा विवाद को हल नहीं कर लेता, उसे कैलाश रेंज को खाली नहीं करना चाहिए, जिस पर चीन जोर दे रहा है। भारतीय सैनिक जो वह तैनात है सीधे मोल्दो ग्लेशियर क्षेत्र पर निशाना साध सकते है जो चीन के लिए काफी घातक है और इसलिए चीन पहली प्राथमिकता में उस क्षेत्र को खाली करवाना चहाता है।

भारत और चीन के बीच हुई सैन्य समझौते के अनुसार, दोनों देश अपने अपने टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों को दक्षिणी बैंक पैंगोंग त्सो से पूरी तरह से वापस कर लेंगे। लेकिन भारत के दक्षिणी बैंकों की ऊंचाइयों पर तैनात सैनिको को नहीं हटाया जायेगा।

रक्षा विशेषज्ञों ने संकेत दिया कि चीन के साथ केवल राजनयिक स्तर पर ही सफलता हासिल की जा सकती है और सैन्य वार्ता से स्थायी परिणाम की संभावना कम है । वार्ता एक संकल्प की ओर बढ़ने के लिए आवश्यक थी लेकिन भारत को बहुत अधिक उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि चीन पर विश्वास करना एक बहुत बड़ी गलती साबित होगी।

भारत को यह बात नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल 15 जून को हमारे जवान गलवान घाटी में इसी तरफ सेना वापसी के एक निर्णय का सत्यापन करने गए थे। चीन ने उन पर आक्रमण कर दिया और भारत के 20 वीर जवान शहीद हो गए।

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