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रायपुर, नवंबर 11
छत्तीसगढ़ सरकार ने झीरम घाटी माओवादी घटना की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग में आज दो सदस्यों को नियुक्त किया है जबकि आयोग ने पिछले सप्ताह ही अपनी रिपोर्ट सौप दी है।
राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता वाले एकल सदस्यीय न्यायिक आयोग में न्यायमूर्ति सतीश के अग्निहोत्री और न्यायमूर्ति जी मिन्हाजुद्दीन (दोनों सेवानिवृत्त) की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की। 23 सितंबर, 2021 को आयोग के सचिव ने कार्यकाल विस्तार की मांग की थी। आयोग का कार्यकाल 30 सितंबर, 2021 को समाप्त हो गया है। दो सदस्यों को शामिल करने का तात्पर्य आयोग के कार्यकाल को बढ़ाने से भी देखा जा सकता है।
न्यायमूर्ति मिश्रा आंध्र प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया है। शनिवार को आयोग के सचिव संतोष कुमार तिवारी ने छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके को झीरम घाटी जांच रिपोर्ट सौंपी, जिसकी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने तीखी आलोचना की। बघेल ने कहा कि राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपना “स्थापित प्रथा” का उल्लंघन है, जबकि कांग्रेस ने इसे “अपूर्ण” रिपोर्ट करार दिया।
दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार ने इस रिपोर्ट का अवलोकन ,अध्ययन और मनन नहीं किया और उससे पहले ही नए सदस्यों की नियुक्ति कर दी और जांच के अतिरिक्त बिंदुओं को जोड़ दिया।
राज्यपाल ने रिपोर्ट प्राप्त की है और प्रथा के अनुसार राज्य सरकार को अग्रेषित करेगा, जिसे रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का निर्णय लेना है।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, कार्यकाल बढ़ाना आश्चर्यजनक है क्योंकि राज्य सरकार ने रिपोर्ट की सामग्री का अध्ययन नहीं किया है और यह नहीं जानती है कि जिन बिंदुओं की वह जांच करना चाहती है, उन्हें जस्टिस मिश्रा के जाँच निष्कर्षों में शामिल किया गया है या नहीं। उन्होंने कहा, “व्यावहारिक रूप से, राज्य सरकार ने सदस्यों की नियुक्ति तब की होती जब उसे रिपोर्ट में खामियां या त्रुटियां दिखती। ”
यदि राज्य सरकार चाहती तो वह पहले ही इन बिंदुओं को शामिल कर सकती थी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा आयोग को अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कह सकती थी।
दिलचस्प बात यह है कि झीरम की दुखद घटना की मुख्य न्यायिक जांच एक सदस्य द्वारा की गई है, जबकि पूरक जांच दो सदस्यों द्वारा की जाएगी जिनमे एक नई दिल्ली में और दूसरा बिलासपुर में रहते है।