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इलाहाबाद, नवंबर ३०
आर्थिक तंगी के कारण सीट आवंटन शुल्क नहीं पटाने से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू) में प्रवेश से वंचित एक दलित छात्रा की मदद के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस दिनेश कुमार सिंह सामने आए और मानवता की मिसाल पेश की।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह पीड़ित छात्रा संस्कृति रंजन की योग्यता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खुद उसकी फीस भर दी। उन्होंने जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी और आईआईटी बीएचयू को भी निर्देश दिए कि छात्रा को तीन दिन में दाखिला दिया जाए। अगर सीट न खाली हो तो अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की जाए।
न्यायाधीश ने स्वेच्छा से शुल्क का योगदान दिया और अदालत के समय के बाद याचिकाकर्ता बच्ची को पैसे सौंप दिए।
कोर्ट ने अपने आदेश में नोट किया, “वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, जहां एक युवा उज्ज्वल दलित छात्रा इस न्यायालय के समक्ष आई.आई.टी. में प्रवेश पाने के अपने सपने को आगे बढ़ाने के लिए इक्विटी अधिकार क्षेत्र की मांग कर रही है, इस न्यायालय ने स्वयं ही सीट आवंटन के लिए 15,000 रुपये का योगदान करने के लिए स्वेच्छा से योगदान दिया है। उक्त राशि आज ही न्यायालय समय के बाद याचिकाकर्ता को सौंप दी गई है ।”
हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में छात्रा बताया कि उसके पिता की किडनी खराब हैं। उनकी बीमारी व कोविड की मार के कारण परिवार की आर्थिक हालत बुरी होने से वह फीस नहीं जमा कर पाई। उसने जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी को पत्र लिखकर फीस जमा करने के लिए मोहलत मांगी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। मजबूरन उसे कोर्ट आना पड़ा। उसने मांग की थी कि फीस की व्यवस्था करने के लिए कुछ और समय दिया जाए।
दरअसल छात्रा दलित है। उसने दसवीं की परीक्षा में 95 प्रतिशत तथा बारहवीं कक्षा में 94 प्रतिशत अंक हासिल किये थे। वह जेईई की परीक्षा में बैठी और उसने मेन्स में 92 प्रतिशत अंक प्राप्त किये तथा उसे बतौर अनुसूचित जाति श्रेणी में 2062 वां रैंक हासिल हुआ। उसके बाद वह जेईई एडवांस की परीक्षा में शामिल हुई जिसमें वह 15 अक्टूबर 2021 को सफल घोषित की गई और उसकी रैंक 1469 थी।