महबूबा मुफ़्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के 1999 में गठन के बाद से ही घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस के विकल्प के रूप में मौजूद रहा हैं। मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार हमेशा से ही एक दूसरे के विरोधी रहे हैं।
अब्दुल्ला परिवार ने विभाजन के बाद से ही कश्मीर का नेतृत्व करता आ रहा है और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) उसका सबसे बड़ा दुश्मन।
लेकिन अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार दोनों को ही अपना राजनीतिक अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा हैं। और शायद यही कारण है एक समय कट्टर दुश्मन रहे नेकां के फारूक अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने धारा 370 के बहाने हाथ मिला लिए है।
अब्दुल्ला को अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए जम्मू-कश्मीर की सात प्रमुख पार्टियों के नवगठित पीपल्स एलायंस के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया है।
वयोवृद्ध सीपीएम नेता एम वाय तारिगामी को संयोजक के रूप में चुना गया, जबकि दक्षिण कश्मीर से लोकसभा सदस्य हसनैन मसूदी गुप्कर घोषणा के लिए पीपुल्स अलायंस समूह के समन्वयक होंगे। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन प्रवक्ता होंगे।
गठबंधन ने अपने प्रतीक के रूप में तत्कालीन राज्य के झंडे को अपनाया है।
नेकां और पीडीपी की दोस्ती एक मजबूरी है दोनों दलो के लिए । राज्य में धारा 370 ख़त्म होने के बाद दोनों क्षेत्रीय दलों की पकड़ राज्य में तेज़ी से ढीली पड़ रही हैं।
हालांकि अब्दुल्ला इस वक़्त असमंजस की स्थिति में हैं। वही महबूबा का भविष्य अनिश्चित है क्योंकि पीडीपी के शीर्ष नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है और अपनी खुद की पार्टी बनाई हैं। महबूबा के कमजोर नेतृत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके आठ वरिष्ठ पार्टी सहयोगियों को केंद्र के नीतियों का कथित रूप से समर्थन देने के लिए पार्टी से निलंबित करना पड़ा।
पूर्व उपमुख्यमंत्री और पीडीपी के संस्थापकों में से एक, मुजफ्फर हुसैन बेघ ने महबूबा को खुलेआम चुनौती दी और उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कश्मीर की जिम्मेदारी लेने से पहले, महबूबा को अपने घर को पहले बचाना होगा।
धारा 370 के मामले में कश्मीर के लोगों का साथ भी महबूबा को मिलने की उम्मीद नहीं है। क्यूंकि उनकी अपनी पार्टी के नेताओं ने ही उन पर आरोप लगाया है कि उन्होंने ही केंद्र को अपने बयानों से भड़काया जिससे जम्मू और कश्मीर राज्य को प्राप्त विशेष दर्जा समाप्त हो गया।