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अयोध्या में एक नई सड़क का नाम राम कुमार कोठारी और शरद कुमार कोठारी के नाम पर रखा जाएगा, जो पवित्र शहर में ऐतिहासिक राम मंदिर आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे।
उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इसकी घोषणा की और कहा कि कोठारी भाइयों की याद में अयोध्या में एक सड़क का निर्माण किया जाएगा।
अक्टूबर 1990 में कोठारी बंधुओं ने कार सेवा में भाग लेने के लिए कोलकाता से अयोध्या आए। कारसेवा करते समय उन्हें पुलिस ने मार दिया। राम 23 वर्ष के थे और शरद सिर्फ 20 साल के थे।
जब-जब राम मंदिर आंदोलन का नाम लिया जाएगा, उसके साथ कोठारी बंधुओं का भी नाम अपने आप आ जाएगा. राम और शरद कोठारी – यही वे दो नाम हैं, जो राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में अमर हो गए. दोनों ही युवक थे और बंगाल से अयोध्या तक सिर्फ अपने आराध्य के लिए प्राणों की आहुति देने आए थे. राम मंदिर निर्माण के साथ ही एक बार फिर कोठारी बंधुओं की कहानी भी ताजा हो गई है.
बंगाल के बलिदानी युवा राम और शरद कोठारी का बचपन मध्य प्रदेश के बैतूल में बीता था. उन्होंने भारत भारती आवासीय विद्यालय जामठी से अपनी 5वीं तक की शिक्षा प्राप्त की थी. रामकुमार कोठारी बड़े थे, तो वे 1973 में यहां आए और शरद छोटे थे, तो उनका एडमिशन 1974 में यहां हुआ. पिताजी हीरालाल कोठारी और माता सुमित्रा देवी के दोनों भाइयों में एक साल का फर्क था और वे हमेशा साथ-साथ ही रहते थे. दोनों भाई कक्षा पांचवीं पास करके वापस कोलकाता चले गए थे. राष्ट्रभक्ति की भावना उनमें बचपन से कूट-कूटकर भरी थी, ऐसे में जल्दी ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नाता जोड़ लिया.
पढ़ाई के साथ-साथ दोनों भाइयों ने संघ की शाखाओं में जाना शुरू कर दिया था. बाद में एक साथ ही उन्होंने द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया. जब 1990 में अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन हुआ तो राम और शरद ने भी विहिप के कारसेवकों की ही तरह अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कारसेवा का फैसला किया.
22 अक्टूबर, 1990 को दोनों भाई अयोध्या के लिए रवाना हुए. मुलायम सरकार की घोषणा थी कि अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. ऐसे में कारसेवकों को जगह-जगह रोका जा रहा था. दोनों भाई अपने एक और साथी के साथ 200 किलोमीटर की पदयात्रा करके बनारस से 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचे. इसके 3 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन हनुमानगढ़ी के पास इकट्ठा उत्साही कारसेवकों में राम और शरद कोठारी भी शामिल थे.
राम और शरद कोठारी 30 अक्टूबर को अयोध्या के विवादित परिसर में पहुंचने वाले पहले लोगों में से थे. अयोध्या में कर्फ्यू लगा था. यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान अयोध्या में तैनात थे. लेकिन कारसेवकों का जत्था अशोक सिंघल, उमा भारती और विनय कटियार जैसे नेताओं की अगुआई में विवादित परिसर की ओर बढ़ता चला जा रहा था. 30 अक्टूबर तक अयोध्या में लाखों कारसेवक इकट्ठा हो चुके थे. इसी बीच बंगाल के इन दो युवकों ने बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा लहरा दिया और कारसेवकों में सनसनी मचा दी. इसके बाद वे बड़े आराम से मस्जिद से नीचे उतरे. हालांकि उसके बाद ही वे प्रशासन की ओर से हुई गोलीबारी में दोनों भाइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
कोठारी बंधुओं का अंतिम संस्कार अयोध्या के सरयू घाट पर 4 नवंबर 1990 को किया गया. इस घटना से रामभक्त काफी दुखी थे. उनके निधन की खबर से उनके गृहराज्य बंगाल में भी लोगों की आंखें नम थीं और उत्तर प्रदेश में भी रामभक्त दुखी थे. अंतिम संस्कार के दौरान राम और शरद कोठारी के अमर रहने के भी नारे लगे थे.
22 और 20 साल की उम्र के इन दोनों भाइयों ने विश्व हिंदू परिषद के कारसेवकों की तरह ही अयोध्या में राममंदिर के निर्माण में अपनी सेवा देने का फैसला किया. 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अपने पिता हीरालाल कोठारी को अयोध्या यात्रा की योजना के बारे में बताया. पिता उन्हें यात्रा में नहीं जाने देना चाहते थे क्योंकि दिसंबर में ही उनकी बहन पूर्णिमा का विवाह था. हालांकि दोनों भाई नहीं माने और अपने साथ कई पोस्टकार्ड ले गए और हर रोज घर पर एक चिट्ठी लिखने का वादा किया.
दिसंबर 1990 के पहले सप्ताह में, जब कोठारी भाइयों की मृत्यु के एक महीने बीत चुके थे, तब उनके घर एक पोस्टकार्ड पहुंचा. ये वही पोस्टकार्ड था, जिसमें कोठारी भाइयों ने अपने जल्दी घर वापस लौटने की बात कही थी.
पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कोठारी भाइयों के बलिदान को याद किया। ऐसा नहीं है कि चुनाव प्रचार के दौरान भाइयों को याद किया गया है। पिछले साल राम मंदिर के भूमिपूजन के दौरान, उनके परिवार के सदस्यों को भी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था।
राज्य में भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने भाग लिया और अपने भाई के बलिदान को याद किया। उन्होंने राम मंदिर के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी धन्यवाद दिया।