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नई दिल्ली, ८ अक्टूबर
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा वह लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए कदमों से संतुष्ट नहीं हैं।
इस घटना में 8 लोगों की जान चली गई थी। उनमें से चार किसान प्रदर्शनकारी थे जिन्हें केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में शामिल वाहनों द्वारा कथित तौर पर कुचल दिया गया था। अन्य को वाहनों से बाहर निकाला गया और प्रदर्शनकारियों ने उनकी पीट-पीट कर हत्या कर दी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने आदेश में दर्ज किया कि अदालत राज्य के कार्यों से संतुष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट लखीमपुर खीरी कांड से जुड़े एक स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई कर रहा है।
उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पुलिस ने मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा को समन भेजा है। पीठ ने पूछा, ‘क्या हम अन्य आरोपियों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करते हैं? नोटिस आदि भेजकर।”
“यह बेंच की राय है … यह एक जिम्मेदार राज्य सरकार और पुलिस है। जब मौत या बंदूक की गोली से घायल होने का गंभीर आरोप है, तो क्या इस देश में अन्य आरोपियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाएगा?” कोर्ट ने पूछा।
साल्वे ने आश्वासन दिया कि संतोषजनक कदम उठाए जाएंगे और अन्य एजेंसी द्वारा जांच की जाएगी। इस पर संज्ञान लेते हुए पीठ ने मामले को 20 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
हालांकि, पीठ ने साल्वे से कहा: “सीबीआई आपके लिए ज्ञात कारणों का समाधान नहीं था … व्यक्तियों के कारण … बेहतर है कि कोई अन्य व्यक्ति (मामले) को देखें।”
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की ओर से पेश हुए हरीश साल्वे को उसका यह संदेश राज्य सरकार को देने को कहा कि लखीमपुर खीरी मामले में सबूत नष्ट न हों।