आर कृष्णा दास
ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन केवल पाकिस्तान की मदद करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना की पहल पर स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने।
1947 में ब्रिटिश सत्ता हस्तांतरण के बाद भारत का विभाजन हुआ। दो राष्ट्रों का जन्म हुआ, भारत और पाकिस्तान। भारत के पहले गवर्नर जनरल बने एक अंग्रेज वही पाकिस्तान ने उसे नकार दिया और जिन्ना को पद पर नियुक्त कर दिया।
हालांकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू माउंटबेटन के विश्वासपात्र थे पर वह जिन्ना ही थे जिन्होंने उन्हें गवर्नर जनरल के रूप में नियुक्त करने अहम भूमिका निभाई। सत्ता हस्तांतरण के तुरंत बाद माउंटबेटन को भारत में रहने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर द्वारा लिखित पुस्तक माउंटबेटन एंड इंडिपेंडेंट इंडिया में उल्लेख किया कि यह सब कैसे संभव हुआ। लेखकों को दिए एक साक्षात्कार में माउंटबेटन ने कहा कि वह सत्ता के हस्तांतरण के बाद बने रहना नहीं चाहते थे क्योंकि वायसराय से संवैधानिक गवर्नर जनरल बनना बहुत आकर्षक और सम्मानजनक नहीं था।
“मैं एक पहल करने वालो में से नहीं था। मेरी पत्नी (एडविना) नहीं रहना चाहती थी। हमने सोचा था कि हम जो उम्मीद कर रहे थे, उसमें हम बाहर निकलेंगे,” माउंटबेटन ने कहा।
लेकिन जिन्ना ने उनसे कहना शुरू कर दिया, “हम पूरी तरह से भारत से कुचले जाएंगे। वे हमें हमारा स्टर्लिंग बैलेंस नहीं देंगे, वे हमें हमारे युद्ध सामग्री नहीं देंगे। वे हमें तब तक कुछ नहीं देंगे जब तक कि आप रुक कर इसे नहीं देखते।”
माउंटबेटन पाकिस्तान के हितों की रक्षा करने की योजना बनाई और प्रस्ताव रखा कि वे भारत और पाकिस्तान दोनों के गवर्नर जनरल बनना चाहते है। उन्होंने जिन्ना को समझाया कि, “दोनों राज्यों के प्रमुख के रूप में, मैं स्पष्ट रूप से भारत में अपने प्रभाव का उपयोग करूंगा ताकि पाकिस्तान के हितो में निर्णय हो सके। ” माउंटबेटन का तर्क था कि यदि वे पाकिस्तान के गवर्नर जनरल नहीं बने तो वे उनके पक्ष में निर्णय नहीं ले पाएंगे।
दिसंबर 1947 तक वायसराय स्टाफ के चीफ और गवर्नर जनरल के स्टाफ रहे लॉर्ड इस्मे नेहरू के पास गए और उन्हें योजना बताई। नेहरू ने सोचा कि यह एक बहुत अच्छा प्रस्ताव है और तुरंत अपनी सहमति दे दी। इस तरह से भारतीय माउंटबेटन के नाम पर सहमत हो गए। लेकिन आखिरी वक्त में पाकिस्तान चकमा दे गया।
माउंटबेटन ने कहा, “हालांकि, जिन्ना ने बाद में मुझसे दोनों देशों के गवर्नर जनरल नहीं बनने पर मेरी नाराज़गी के बावजूद भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए भीख माँगी।” एक बड़ा झटका मिलने के बावजूद, माउंटबेटन ने जिन्ना की सलाह पर काम करना जारी रखा और स्वतंत्रता भारत के पहले गवर्नर जनरल बन गए। माउंटबेटन भारत में बने रहे और पहले दो माह के भीतर ही भारत और पाकिस्तान के संकट गहरे होते चले गए।
औपनिवेशिक शासन के पूरे इतिहास में माउंटबेटन एक मात्र पूर्व औपनिवेशिक शासक के प्रतिनिधि होंगे जिन्हे सत्ता हस्तांतरण के बाद भी नए स्वतंत्र राष्ट्र के नेताओं द्वारा बने रहने के लिए कहा गया था।