लव कुमार मिश्रा
पिछले छह हफ्तों में, कांग्रेस ने अपने तीन प्रमुख नेता खो दिए जिनमें अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा और माधव सिंह सोलंकी शामिल हैं।
सोलंकी का शनिवार सुबह निधन हो गया। पटेल की तरफ वे भी गुजरात से आते थे।
माधव सिंह सोलंकी कोली जाति के सदस्य थे (जो भारत के राष्ट्रपति, रामनाथ कोविंद की भी जाति हैं)। उन्हें गुजरात में जाति आधारित राजनीतिक गठबंधन का वास्तुकार माना जाता है ।
गुजरात के चार बार के मुख्यमंत्री तथा विदेश मंत्री रहे माधव सिंह सोलंकी ने केएचएएम (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम) गठबंधन बनाया। गुजरात की राजनीती में उच्च जाति जैसे ब्राह्मणों, बनियों और पटेलों का वर्चस्व था ।
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने पिछड़ी जातियों को सशक्त बनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन सोलंकी ने 1980 में सफलतापूर्वक इसकी शुरुआत की जब उन्होंने कांग्रेस को गुजरात विधानसभा चुनावों में 182 में से 141 सीटों पर जीत दिलाई। उन्होंने 1989 के चुनावों में इसे दोहराया, जब कांग्रेस ने 182 में से 149 सीटें जीतीं।
राज्य में सीमांत पिछड़ी जातिया केएचएएम के सफल प्रयोग के बाद काफी सशक्त बन गया जिससे उच्च जाति की लोगो का झुकाव बीजेपी के तरफ बाद गया । पटेलों, बनियों और ब्राह्मणों ने कांग्रेस के खिलाफ हाथ मिला लिया जिससे भाजपा को गुजरात में पैर पसारने का मौका मिल गया और वह कोलियों के गठबंधन के साथ सत्ता में भी आ गयी।
सोलंकी उस पीढ़ियों के शायद आखरी नेता होंगे जिनकी साहित्य और पुस्तकों में रुचि थी। वह एक उत्साही पाठक थे और अंग्रेजी में नई प्रकाशित पुस्तकों के भी शौकीन थे। उन्होंने एक बार नई दिल्ली में गुजरात भवन में लेखक से कहा कि इंदिरा गांधी को भी नवीनतम पुस्तकों को पढ़ने की उनकी आदत पसंद आती थी और उन्होंने दावा किया कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने अब्राहम लिनकॉन से लेकर नेपोलियन की आत्मकथाओं तक के उनके उद्धरणों की “कामुकता और रचनात्मकता” के लिए उनके तर्कों को बड़े पैमाने पर सराहा भी है। उन्होंने यह विश्लेषण गुजरात की एक महिला कांग्रेस नेता की उपस्थिति में किया था जो बाद में एक दक्षिणी भारतीय राज्य की राज्यपाल बनी।
वह हर तरह से सुंदरता के शौकीन थे और खुद को एक ग्लैमरस राजनेता मानते थे, जिसे प्रधानमंत्रियों ने भी सराहा था। वह उस दौर में मीडिया फ्रेंडली व्यक्ति थे जब कोई टीवी चैनल नहीं था। वे गांधीनगर के एक गुजराती दैनिक के लिए भी लिखते थे।
आरक्षण विरोधी (अनामत आंदोलन) आंदोलन के चलते उन्हें एक बार उनकी कुर्सी की कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें तत्कालीन शक्तिशाली कांग्रेस नेताओं-जेनाभाई दारजी और सनत मेहता के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन निजी बातचीत में भी कभी उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों के बारे में बुरा नही कहा।
सोलंकी ने अहमदाबाद-मुंबई रेल मार्ग पर नए उद्योगों की अनुमति देकर राज्य के औद्योगिकीकरण में मदद की, कच्छ में नए बंदरगाह स्थापित किए और भूमि उपयोग रूपांतरण कानूनों में बदलाव करके सरकारी उद्योगों को निजी उद्योगों को हस्तांतरित करने की सुविधा प्रदान की।
उन्हें गुजरात में स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन योजना शुरू करने के लिए याद किया जाएगा, जिसका अन्य राज्यों ने पालन किया।
जब गुजरात सरकार के पास कोई राज्य हेलीकॉप्टर या राज्य विमान नहीं था, तो सोलंकी सड़क मार्ग से कच्छ क्षेत्र के लाहपत जैसे दूर के स्थानों की यात्रा करते थे। विधानसभा चुनावों के दौरान, वह किसी की भी टिकट काटने से नही डरते थे जिससे चलते वे अपने भरोसेमंद सहयोगियों को भी टिकट देने से इनकार कर देते थे केवल इसलिए कि उन्हें उनकी जीत पर संदेह रहता था।
उनकी मृत्यु के साथ ही गुजरात ने एक अच्छा राजनेता खो दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और गुजरात में लम्बे समय तक एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक के लिए कार्य किये है)