लव कुमार मिश्रा
पटना, मार्च 19
झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने हेमंत सरकार के मॉब लिंचिंग बिल को वापस लौटा दिया है वहीं राजभवन की तरफ से सरकार को दो खास सुझाव भी दिए गए हैं।
राज्यपाल की तरफ से बिल में भीड़ की परिभाषा पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया है। दरअसल बिल में दो और दो सो ज्यादा लोगों को भीड़ माना गया है। राज्यपाल का मानना है कि बिल में भीड़ की परिभाषा कानून के मुताबिक नहीं है। सरकार से कहा गया है कि बिल में कानून की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है।
भाजपा की झारखंड इकाई ने शुक्रवार को राज्यपाल रमेश बैस के निर्णय का स्वागत किया।
भाजपा सदस्यों के सदन से बहिर्गमन के बीच 21 दिसंबर को राज्य विधानसभा के शीत कालीन सत्र में विधेयक पारित किया गया था।
झारखंड भाजपा के अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि राजभवन ने कानूनी राय लेने के बाद विधेयक वापस कर दिया। विधेयक के प्रावधानों का उद्देश्य एक विशेष समुदाय को खुश करना है। दीपक ने कहा कि विधेयक का मसौदा तैयार करते समय विवेक का इस्तेमाल नहीं किया गया, जो सामाजिक सद्भाव को बाधित कर सकता था।
भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने विधेयक की सामग्री पर आपत्ति जताते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा था।
पूर्व अध्यक्ष और रांची से भाजपा विधायक चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह ने “जल्दबाजी” में पारित विधेयक को खारिज करने के लिए राज्यपाल को धन्यवाद दिया।
झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस छत्तीसगढ़ के रायपुर से पूर्व सांसद हैं और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे।
जन जाति सुरक्षा समिति के एक अन्य प्रतिनिधिमंडल ने 11 फरवरी को राज्यपाल से मुलाकात की थी और आग्रह किया था कि विधेयक को उनके द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाना चाहिए।
सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में 2019 में सरायकेला में तबरेज अंसारी और रामगढ़ में दो अन्य लोगों की हत्या की घटनाओं के बाद मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए कानून बनाने का वादा किया था।
विधेयक के प्रावधानों के अनुसार दो या तीन लोगों को भीड़ माना गया है । राजभवन ने इसे कानून के खिलाफ पाया और कहा कि कानून में परिभाषित भीड़ को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
सरकार के इस बिल में जुर्माने के साथ संपत्ति की कुर्की और तीन साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया है। अगर मॉब लिंचिंग में किसी की मौत हो जाती है, तो दोषी को आजीवन कारावास तक की सजा होगी। गंभीर चोट आने पर 10 साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है।
उकसाने वालों को भी दोषी माना जाएगा और उन्हें तीन साल की सजा होगी वहीं अपराध से जुड़े किसी साक्ष्य को नष्ट करने वालों को भी अपराधी माना जाएगा। साथ ही पीड़ित परिवार को मुआवजा व पीड़ित के मुफ्त इलाज की व्यवस्था है।
राजभवन ने विधेयक के हिंदी और अंग्रजी वर्जन में असमानता पाई है।