नागा रेजिमेंट का उदय उत्तर पूर्वी भारत में साठ के दशक में उग्रवाद के बढ़ने के साथ हुआ। इस रेजिमेंट के जवान प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे, जब उन्हें बगैर किसी तैयारी के आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए जाना पड़ा था ।
नागा रेजिमेंट की तीसरी बटालियन को आज सेना दिवस के दिन उनके उत्कृष्ट और मेधावी योगदान के लिए सेना प्रमुख यूनिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। नागा रेजिमेंट की 3 वीं बटालियन उन 15 बटालियनों में से एक है जिन्हें आज सम्मानित किया गया है।
नागा रेजिमेंट के गठन की एक दिलचस्प कहानी है। 1957 में जब नगा पहाड़ियों में उग्रवाद पनप रहा था, तब नागा लोगों का एक सम्मेलन हुआ और इसके परिणामस्वरूप नागालैंड को एक अलग राज्य का दर्जा और भारतीय रक्षा बलों में नागा लोगों के लिए एक अलग इकाई बनाने की मांगों उठी।
1960 के दौरान, नागा पीपुल्स कन्वेंशन के प्रतिनिधिमंडल ने सशस्त्र बलों में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपनी इच्छा के लिए एक अलग रेजिमेंट के लिए का प्रस्ताव रखा। नागालैंड ने 1963 में राज्य का दर्जा प्राप्त किया और इसके सात साल बाद नागा रेजिमेंट का गठन किया गया।
लेकिन इसके उत्थान के बारे में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी था कि इससे कई पूर्व-उग्रवादियों को राष्ट्रवाद को साबित करने का उचित मौका दिया गया और भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल होने का अवसर इन्हें प्राप्त हुआ, उनमें से कई तो सीधे जूनियर कमीशन अधिकारी नियुक्त किए गए थे।
इससे पहले कि उनका प्रशिक्षण पूरा हो सके और नए भर्ती हुए सैनिकों को निष्ठा की शपथ दिलाई जा सके, पूर्वोत्तर भारत में विद्रोह शुरू हो गए। प्रशिक्षण पूर्ण होने से पहले ही नागा रेजिमेंट को संबंधित क्षेत्रों में भेजने का आदेश दिया गया। रेजिमेंट को आतंकवाद विरोधी अभियानों में बिना अच्छे तैयारी के भेज दिया गया। लेकिन, जवानो ने अभियान को सफल कर अपनी क्षमता सिद्ध कर दी।
नागा रेजिमेंट की पहली बटालियन को 1 नवंबर 1970 को लेफ्टिनेंट कर्नल आर.एन. महाजन की कमान में कुमाऊं रेजिमेंटल सेंटर, रानीखेत में प्रशिक्षित किया गया।
इस बटालियन को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी कुमाऊं रेजिमेंट, गढ़वाल राइफल्स और 3 गोरखा राइफल्स की बटालियनों को प्रदान की गई थी। 69 नागाओं को पुनर्वास शिविरों से सीधे नामांकित किया गया था। हालांकि, रेजिमेंट की टुकड़ियों में 50 प्रतिशत नागा और 50 प्रतिशत कुमाऊँ, गढ़वालियों और गोरखाओं के सैनिक होने थे। चूँकि कई कुमाऊँ बटालियनें नागालैंड से जुड़ी थीं, विशेषकर नागा रेजिमेंट के गठन से पहले के वर्षों में भी,इसलिए सभी रेजिमेंटल मामलों के लिए इनका कुमाऊँ रेजिमेंट से संबद्ध था।
किसी इकाई द्वारा किए गए उत्कृष्ट और मेधावी योगदान की मान्यता में सेना दिवस के अवसर पर सेना प्रमुख यूनिट प्रशस्ति पत्र प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। सेना दिवस हर साल 15 जनवरी को मनाया जाता है क्योंकि यह ऐतिहासिक दिन है जब जनरल केएम करियप्पा 1949 में भारतीय सेना की कमान संभालने वाले पहले भारतीय बने थे ।