छत्तीसगढ़ के शीर्ष नौकरशाह उस समय स्तब्ध रह गए जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने घोषणा की कि राज्य सरकार भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को) को खरीदेगी।
2001 में बाल्को को विनिवेश के लिए रखा गया था। अधिकारी केंद्र से पत्राचार किये और इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली भी गए। लेकिन फिर भी राज्य सरकार के पास इस हेतु कोई ठोस योजना नहीं तैयार हो सकी ।
उद्योग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज रिविटिंग को बताया, “बाल्को को खरीदने के लिए केंद्र को कोई प्रस्ताव भेजा नहीं जा सका था और यह मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला गया।” बाल्को के विनिवेश को लेकर हंगामा सचमुच राजनीतिक साबित हुआ।
लगभग दो दशकों के बाद, छत्तीसगढ़ फिर एक बार इस ओर कदम बढ़ा रहा है – और इस बार ये कदम स्टील प्लांट खरीदने के लिए हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अगर केंद्र बस्तर में नगरनार स्टील प्लांट (एनसीपी) के विनिवेश की अपनी योजना को आगे बढ़ाता है, तो राज्य सरकार इसको खरीदना के लिए तैयार है।
लेकिन वर्तमान में परिस्थितयाँ काफी बदल चुकी है। 2001 में, छत्तीसगढ़ एक नवजात राज्य था और उसके पास कम से कम वित्तीय दायित्व थे। लेकिन अब, स्टील प्लांट को खरीदने और चलाने के लिए एक बड़ी राशि का निवेश करना आसान काम नहीं होगा। स्टील प्लांट खरीद की न्यूनतम राशि लगभग 23,140 करोड़ रुपये होने की संभावना है।
चूंकि बोली में निजी कंपनियों भी रहेंगी इसलिए कीमत और बढ़ेगी। राज्य वित्तीय संकटों से जूझ रहा है और कई योजनाएँ धरातल पर हैं, क्या छत्तीसगढ़ में इस्पात संयंत्र की स्थापना करना व्यावहारिक होगा?
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार फैसला व्यावहारिक नहीं होगा जिसके दो प्रमुख कारण है। सबसे पहले, स्टील प्लांट चलाना राज्य का काम नहीं है, और छत्तीसगढ़ इस्पात सयंत्र लगाने वाला देश का शायद एकमात्र राज्य होगा । राज्य द्वारा संचालित बिजली संयंत्रों की ख़राब स्थिति इसका उदहारण है । दूसरा सरकारी खजाने से इतनी बड़ी राशि का निवेश करना एक बुरी अर्थव्यवस्था को बुलावा देना है।
अब मान लीजिए कि राज्य सरकार ने केंद्र से कहा की वह संयंत्र मुफ्त में दे दे क्यूंकि उन्होंने 1,980 एकड़ क्षेत्र 3-एमटीपीए संयंत्र के लिए आवंटित किया था। तब भी ये सौदा मुश्किल है क्योंकि केंद्र सरकार इस विनिवेश से अपने लिए प्राप्त होने वाले भारी राजस्व पर नजर रखे हुए है।
इसके अलावा, बुनियादी ढांचे और मशीनरी में भी छत्तीसगढ़ सरकार को निवेश करना होगा। इसके लिए कम से कम 17,186 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा।
राज्य सरकार के लिए अन्य उपलब्ध विकल्प सार्वजनिक या निजी खिलाड़ियों के साथ एक संयुक्त उद्यम (जेवी) तैयार करना और संयंत्र के लिए बोली लगाना है। लेकिन छत्तीसगढ़ में जेवी मॉडल हमेशा सवालों के घेरे में रहा है।
छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (सी एम डी सी) ने 2008 में एन एम डी सी के साथ एक जेवी का गठन किया। नई इकाई एन सी एल (एन एम डी सी -सी एम डी सी लिमिटेड) को 2015 में पर्यावरण की मंजूरी मिली, और दंतेवाड़ा जिले के 413.74 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले बैलाडिला के डिपॉज़िट -13 खदान से 10 मिलियन टन लौह अयस्क का खनन के स्वीकृति मिल गयी।
उच्च श्रेणी के 326 मिलियन टन लौह अयस्क का विशाल भंडार अप्रयुक्त पड़ा हुआ है क्यूंकि सरकार एक आंदोलन को संभाल नहीं पायी । बिना किसी निवेश और प्रयासों के राज्य सरकार को इस परियोजना से सालाना 2000 करोड़ रुपये से अधिक मिल सकता था।