आर कृष्णा दास
5 अक्टूबर को कराची में एक रैली पर हुए ग्रेनेड हमले ने पाकिस्तानी प्रशासन की जड़ें हिला कर रख दी है।इस घटना से पाकिस्तान के अधिकारियों को ये समझ आ गया कि जिन आतंकवादी समूहों को वो देश से जा चुका समझते थे वो वापस आ गए हैं।
जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के भारत सरकार के फैसले की पहली वर्षगांठ के विरोध में , जमात-ए-इस्लामी द्वारा निकाली गई इस रैली पर हुए हमले में कम से कम 39 लोग घायल हुए। सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी (एस एल ए) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली।एक छोटे समूह के द्वारा इस प्रकार का बड़ा धमाका करने से पाकिस्तानी सरकार दंग रह गई।
सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी (सिंध लिबरेशन आर्मी या एस एल ए ) पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित लोगों का एक सशस्त्र समूह है। लगभग चार साल की चुप्पी के बाद, एसएलए ने इस प्रकार का हमला किया है और ये संदेश दिया है कि ये गुट अब फिर से सक्रीय हो गया है।
सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी का नाम सबसे पहले 2010 में सुर्खियों में आया, जब उसने हैदराबाद (पाकिस्तान) के पास रेलवे पटरियों पर बम विस्फोट का दावा किया। ये समूह सिंध के कुछ हिस्सों में कम तीव्रता वाले बम विस्फोट के लिए भी जिम्मेदार है। मई 2012 में, समूह ने, सिंध के विभिन्न जिलों में स्थित नेशनल बैंक (एनबीपी) की बैंक शाखाओं और स्वचालित टेलर मशीनों (एटीएम) के बाहर कम तीव्रता वाले बम विस्फोटों की जिम्मेदारी भी ली, इन हमलों में चार लोग घायल हो गए थे।
2016 में, इन्होंने गुलशन-ए-हदीद कराची में रिमोट कंट्रोल बम के साथ चीनी इंजीनियर के एक वाहन को निशाना बनाया था। विस्फोट में चीनी नागरिक और उसका चालक घायल हो गए थे।
दरिया खान इस गुट का सरगना है , जबकि पाकिस्तान की मीडिया ने दावा किया कि जेया सिंध मुत्तहिदा महाज के अध्यक्ष शफी मुहम्मद बुरफत काबुल से सेना का संचालन कर रहे हैं। पाकिस्तान ने भारत पर बार-बार एसएलए का समर्थन करने का आरोप लगाया है।
लेकिन पाकिस्तान की ये झल्लाहट यहीं खत्म नहीं होती है। दूसरे उग्रवादी समूह भी अब देश के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं जो आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल माना जाता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो पाकिस्तान अब वही काट रहा है जो उसने बोया था।
पाकिस्तानियों ने ये इल्ज़ाम लगाया है कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ और अफगान खुफिया एजेंसी साथ मिलकर, एस एल ए के अलावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टी टी पी ) उर्फ पाकिस्तानी तालिबान का समर्थन कर रहे हैं और उन्हें जरूरी सामान उपलब्ध करा रहे हैं ।
2014 में पाकिस्तान के सेना के अभियानों ने तालिबानी विद्रोहियों को उनके क़बायली अभयारण्य वाले क्षेत्रों से बाहर कर दिया था जो उनकी प्रमुख पनाहगाह थी।लेकिन अब मुफ्ती नूर वली के टीटीपी की कमान संभालने के बाद से, उन्होंने समूह को पुनर्जीवित करने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है, उन्होंने 2014 के बाद से टीटीपी को सशक्त बनाने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाए हैं।
कमांडर मुखलिस यार के नेतृत्व वाले समूह”हकीमुल्ला महसूद ग्रुप” के आतंकवादी सबसे पहले टीटीपी में वापस आए। इसकी घोषणा टीटीपी द्वारा जारी एक उर्दू भाषा की प्रेस विज्ञप्ति में 6 जुलाई, 2020 को की गई थी। उसी महीने यह भी घोषणा की गई थी कि तथाकथित अलकायदा संबंध पंजाबी तालिबान समूह अमजद फारूकी गुट भी इनके साथ शामिल हो गया है।
फिर टीटीपी मीडिया सेल ने इस साल अगस्त में घोषणा की ,कि मौलवी ख़ुश मुहम्मद सिंधी के नेतृत्व वाले लश्कर-ए-झांगवी के अमीर उस्मान सैफ़ुल्लाह कुर्द समूह, टी टी पी के प्रमुख नूर वली महसूद के प्रति निष्ठा व्यक्त करते हुए टीटीपी में शामिल हो गए हैं।
इस साल मार्च से लेकर अब तक , टीटीपी आतंकवादियों ने 40 पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला है, जो अधिकारियों के लिए एक खतरे की घंटी है। टीटीपी कई जिहादी और सांप्रदायिक समूहों के लिए एक मददगार हाथ साबित हुआ करता था, जो काबुल में तालिबान शासन के दौरान उभरा और उसके बाद इसने पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में अपने पांव पसारे।
टीटीपी पाकिस्तान का सबसे बड़ा आतंकवादी समूह है। हो सकता है कि वे आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर तनाव न बढा सकें जैसा वे 2014 तक कर पा रहे थे।लेकिन अगर पाकिस्तानी सरकार को इस आतंकवादी गुट पर जल्दी ही नकेल कसनी होगी नहीं तो देश में आतंकवादी हमलों की एक नई लहर शुरू हो सकती है।
टीटीपी समूह के बड़े नेता लतीफ महसूद को अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों ने पकड़ लिया था, जब उसे अफगान की खुफिया एजेंसी द्वारा ले जाया जा रहा था । अमेरिकी सेना ने टीटीपी नेता को पाकिस्तानी अधिकारियों को सौंप दिया, जिससे अफगानी राष्ट्रपति हामिद करजई काफी नाराज हुए थे ।
पाकिस्तान दावा करता है और इसे एक बहुत बड़ा प्रमाण मानता है कि कैसे अफगानी खुफिया एजेंसियों द्वारा टीटीपी का समर्थन कर रही है। 2016 में, लतीफ महसूद ने एक सार्वजनिक वीडियो बयान जारी कर दावा किया था कि, भारतीय और अफगान खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान के खिलाफ टीटीपी और अन्य आतंकवादी समूहों का समर्थन करने के लिए जिम्मेदार हैं।