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नई दिल्ली, जनवरी 1
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा देने वाले परमवीर चक्र विजेता सूबेदार-मेजर (मानद कैप्टन) योगेंद्र सिंह यादव आज भारतीय सेना से सेवानिवृत हो गए।
साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान एक सिक्के ने बचाई थी उनकी जान और 17 गोली लगने के बाद भी उन्होंने तबाह कर दिए थे दुश्मन के बंकर। योगेंद्र सिंह यादव 18 ग्रेनेडियर बटालियन में पदस्थ थे। उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी और एलओसी की सीमा पर सेना में ढाई साल ही हुए थे।
ग्रेनेडियर यादव 18 ग्रेनेडियर्स के साथ कार्यरत कमांडो प्लाटून ‘घातक’ का हिस्सा थे, जो 4 जुलाई 1999 के शुरुआती घंटों में टाइगर हिल पर तीन सामरिक बंकरों पर कब्ज़ा करने के लिए नामित की गयी थी। बंकर एक ऊर्ध्वाधर, बर्फ से ढके हुए 1000 फुट ऊंची चट्टान के शीर्ष पर स्थित थे।
यादव स्वेच्छा से चट्टान पर चढ़ गए और भविष्य में आवश्यकता की सम्भावना के चलते रस्सियों को स्थापित किया। आधे रस्ते में एक दुश्मन बंकर ने मशीन गन और रॉकेट फायर खोल दी जिसमे प्लाटून कमांडर और दो अन्य शहीद हो गए। अपने गले और कंधे में तीन गोलियों के लगने के बावजूद, यादव शेष 60 फीट चढ़ गए और शीर्ष पर पहुंचे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह पहले बंकर में घुस गए और एक ग्रेनेड से चार पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या कर दी और दुश्मन को स्तब्ध कर दिया, जिससे बाकी प्लाटून को चट्टान पर चढ़ने का मौका मिला।
उसके बाद यादव ने अपने दो साथी सैनिकों के साथ दूसरे बंकर पर हमला किया और हाथ से हाथ की लड़ाई में चार पाकिस्तानी सैनिकों की हत्या की। अतः प्लाटून टाइगर हिल पर काबिज करने और 17000 फ़ीट पर तिरंगा फहराने में सफल रही।
इस अदम्य साहस के लिए उन्हें उच्चतम भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मात्र 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले ग्रेनेडियर यादव, सबसे कम उम्र के सैनिक हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ।
भारतीय सेना ने आज उन्हें परंपरागत विदाई दी और उनके जज्बे को सलाम किया।