आर कृष्ण दास
भाजपा नहीं, पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी राज्य में कांग्रेस की सरकार जाने के लिए स्वयं जिम्मेदार है।
यदि नारायणसामी ने पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी और पार्टी के विद्रोहियों से निपटने के लिए समय पर काम किया होता, तो संकट टल सकता था। दक्षिण भारत में एक मात्र कांग्रेस शासित राज्य आज पंजे की पकड़ से छूट गया।
बुधवार को राहुल गांधी की पुडुचेरी यात्रा के कुछ घंटे पहले, एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्हें पहले जाना चाहिए था। “उनकी यात्रा से शायद असंतुष्ट नेताओं के मन में आशा जागती और वे विद्रोह टाल देते । लेकिन शायद बहुत देर हो चुकी थी। हमने बहुमत खो दिया,” कांग्रेस नेता ने कहा।
नारायणसामी के पास पुडुचेरी के मुख्यमंत्री के रूप में लड़ने के अलावा कई और लड़ाइयाँ लड़ने को थीं। जब किरण बेदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए अड़ंगा लगा रही थी तो नारायणसामी को पता था कि उनकी पार्टी कमजोर हो रही है। इसके अलावा, बेदी ने प्रशासन को सुव्यवस्थित करने और कई सरकारी अभियानों को पारदर्शी बनाने के कारण भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था चरमरा गयी जिससे कई नेता परेशान हो गए।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, बेदी के कारण सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेताओं का चुनाव में किया गया “निवेश” वापस निकालना मुश्किल हो गया। कुछ नेताओं ने महसूस किया कि अब कांग्रेस या डीएमके में रहने से कोई लाभ नहीं होने वाला क्यूंकि राज्यपाल के माध्यम से दिल्ली अगले चार साल तक राज्य में नियंत्रित रखने वाली है।
यह एक महत्वपूर्ण पहलु था जिसे नारायणसामी ने शायद नज़रअंदाज़ कर दिया। वह न तो कभी किरण बेदी के मामले में आक्रामक हुए और न ही पार्टी की अंदरूनी समस्याओं को संभालने में। नारायणसामी मुखर नहीं हुए क्यूंकि वे गांधी परिवार और डीएमके के प्रमुख एम के स्टालिन के साथ अपनी नज़दीकी को लेकर बहुत आश्वस्त थे।
डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने बेदी और आंतरिक पार्टी की समस्याओं से निपटने के लिए नारायणसामी को उनके “ठंडे” दृष्टिकोण के लिए दोषी ठहराया। डीएमके नेता ने कहा, “यह जानते हुए हमने महीनों पहले नारायणसामी को इस्तीफा देने और इस संकट से निकलने के लिए चुनाव कराने का सुझाव दिया था। नारायणसामी इसे गंभीरता से नहीं लिया। उस समय इस्तीफा देना का सबसे उपयुक्त समय था जब किरण बेदी का हस्तछेप चरम पर था।
अंतिम क्षणों तक न तो नारायणसामी और न ही कांग्रेस आलाकमान ने इन खतरों पर विचार करने की जहमत उठाई।