श्रीलंका में चीनी जहाज के निशाने पर रहेंगे भारत के परमाणु स्टेशनों

युआन वांग 5

आर कृष्णा दास

इस सप्ताह श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंच रहे चीनी पोत ‘युआन वांग 5’ को लेकर भारत चिंतित है। समुद्र में चीन का  विशेषज्ञों के अनुसार पोत में तटीय राज्य की जासूसी करने की क्षमता है।

रक्षा विशेषज्ञों  के अनुसार पोत की हवा में पहुंच 750 किमी से ज्यादा है। इसका मतलब यह हुआ कि परोक्ष तौर पर तमिलनाडु के कलपक्कम, कुडनकुलम और परमाणु अनुसंधान केंद्र चीन की जासूसी की परिधि में आ जाएंगे। यह जहाज केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के बंदरगाहों पर नजर रख सकता है।

दक्षिण भारत के कम से कम छह बंदरगाह चीन के फोकस में रहेंगे। वह युआन वांग5 के जरिये दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के बारे में जानकारी जुटा सकता है। हंबनटोटा से भारत की दूरी महज 450 किमी है।

हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में चीनी जासूसी जहाज ‘युआन वांग 5’ की उपस्थिति के सैनिक और राजनीतिक प्रभाव कई गुना हैं। इसलिए विश्लेषकों का कहना है कि 11-17 अगस्त के दौरान एक सप्ताह के लिए श्रीलंका का दौरा करने वाले पोत का भारतीय सुरक्षा ढांचे पर बड़ा असर पड़ेगा।

मिसाइल और उपग्रह ट्रैकिंग में जहाज की एक अलग भूमिका है और भारत के पड़ोस में इसकी उपस्थिति का अपने देश के लिए गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। 2014 में कोलंबो बंदरगाह पर डॉक की गई चीनी पनडुब्बियों की तुलना में ‘युआन वांग 5’ अपनी क्षमताओं में घातक है।

युआन वांग 5′ युआन वांग श्रृंखला की तीसरी पीढ़ी का ट्रैकिंग जहाज है, और 2007 में सेवा में प्रवेश किया। जियांगन शिपयार्ड द्वारा निर्मित, ‘युआन वांग 5’ में 25,000 टन का विस्थापन है और यह 12.वांग तक हवा के पैमाने का सामना कर सकता है।

भारत की चिंताओं से कोलंबो को बिना किसी अनिश्चितता के अवगत करा दिया गया है। हालांकि सुरक्षा प्रतिष्ठान के उच्चतम स्तर पर मामले की निगरानी की जा रही है।

चीन का हंबनटोटा बंदरगाह पर खासा प्रभाव है। श्रीलंका को संकट में डालने वाले राजपक्षे परिवार के क्षेत्र में दबदबा रहा है।  यहाँ ज्यादातर गतिविधियां पर्दे के पीछे होती रहती हैं। श्रीलंका चीन से लिया गया लोन वापस नहीं कर पाया था।

इसके बाद उसने हंबनटोटा बंदरगाह को चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स को 99  साल की लीज पर दिया था। उसने कई तरह की आशंकाओं को जन्‍म दिया था। इसमें सबसे बड़ी चिंता यह थी कि चीन इसका इस्तेमाल सैन्‍य मकसद से कर सकता है।

श्रीलंका इस समय अपने सबसे बुरे आर्थिक और राजनीतिक दौर से गुजर रहा है। द्वीपीय राष्ट्र को अभूतपूर्व राजनीतिक संकट और आर्थिक उथल-पुथल से बचाने के लिए भारत इस कैलेंडर वर्ष के पहले चार महीनों में श्रीलंका में शीर्ष ऋणदाता के रूप में सामने आया है।

श्रीलंका के वित्त मंत्रालय के अनुसार, भारत ने 1 जनवरी से 30 अप्रैल, 2022 की अवधि के दौरान चीन के 67.9 मिलियन अमरीकी डालर की तुलना में 376.9 मिलियन अमरीकी डालर का ऋण दिया है। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) 359.6 अमरीकी डालर के साथ दूसरे सबसे बड़े ऋणदाता के रूप में है। पहले चार महीनों में करोड़ों का वितरण किया जा रहा है ताकि भारत के पड़ोसी देश को कुछ राहत मिल सके।  

श्रीलंका शायद यह एहसान भूल गया!

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