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नई दिल्ली, अक्टूबर 28
सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करना प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर भारी पड़ गया। याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मैलिग्नेंसी और कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति को दिए गए जमानत आदेश में हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि जमानत के आदेश में कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने ईडी अधिकारी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाना का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा “मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रतिवादी मैलिग्नेंसी और कैंसर से पीड़ित है और उसके बाद जब उसे जमानत पर रिहा किया गया है, तो इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।”
पीठ ने यह भी कहा कि ईडी को उक्त एसएलपी दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट के शब्दों में, एसएलपी सिर्फ स्टेशनरी, कोर्ट के कीमती समय के अलावा कानूनी फीस की बर्बादी थी।
अदालत ने याचिका दायर करने की अनुमति देने वाले संबंधित अधिकारी पर 1,00,000 रुपये (एक लाख) का जुर्माना लगाया।
कोर्ट ने कहा कि विशेष अनुमति याचिका को अनुकरणीय जुर्माना के साथ खारिज किया जाता है, जिसे संबंधित अधिकारी द्वारा वहन किया जाना है। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने जुर्माना की रकम अधिकारी के वेतन से वसूल कर चार सप्ताह की अवधि के भीतर न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करने को कहा है।