महामारी ने तोड़ा टाटा-मिस्त्री परिवार का 70 साल पुराना संबंध

राहें अलग: रतन टाटा और सीरस सायरस मिस्त्री

आर कृष्णा दास

कोविड 19 के विनाशकारी प्रभाव की वजह से भारत के सबसे बड़े कारोबारी समूह पर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। इस महामारी की वजह से टाटा और मिस्त्री परिवारों के बीच की 70 साल पुरानी साझेदारी समाप्त होने की कगार पर है।

देश में स्वतंत्रता के बाद की उथल-पुथल और 1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीति के बाद भी ये साझेदारी बनी रही। लेकिन अब ये समाप्त होने की कगार पर है। टाटा समूह ने मिस्त्री परिवार की कंपनी शारपूजी पलोनजी समूह (एसपी समूह) की 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की पेशकश की है। वही मिस्त्री परिवार ने भी अदालत से कहा है कि अब टाटा से अलग होने का समय आ गया है।

टाटा-मिस्त्री रिश्ते के अंत की शुरुआत तब हुई जब 2016 में टाटा संस से साइरस मिस्त्री को बाहर कर दिया गया। तभी से दोनों समूहों के बीच आपस मे ठन गई थी और दोनों पक्षों को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा दायर करना पड़ा ।

टाटा संस में सबसे बड़े शेयरधारक शापूरजी पल्लोनजी (एसपी) ग्रुप के वित्तीय स्वास्थ्य पर कोविड 19 महामारी का गहरा प्रभाव पड़ा। महामारी से उत्पन्न हुए वित्तीय संकटों से निपटने के लिए एसपी समूह द्वारा किये जा रहे प्रयासों को टाटा समूह ने गहरा झटका दिया। टाटा समूह, एसपी समूह को टाटा संस में उनकी हिस्सेदारी को बेचकर पूंजी जुटाने से रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट चला गया।

एसपी समूह की ऋण देनदारी मार्च 2019 में लगभग 30,000 करोड़ रुपये की थी। कोविड 19 महामारी ने एसपी समूह के इस देनदारी से उबरने के सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया, जिसकी आय का प्रमुख साधन रियल एस्टेट और निर्माण कार्यों में निहित है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान समूह की कंपनी स्टर्लिंग और विल्सन सोलर को हुआ, जो पहले ही ऋण अदायगी की समस्या से जूझ रही हैं।

समूह ने 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि टाटा समूह के साथ व्यापार संबंधी चल रही खींचतान की वजह से अब उनका टाटा संस से बाहर निकलना आवश्यक है।

एसपी ग्रुप ने अपनी 18.37 प्रतिशत हिस्सेदारी का मूल्य 1,78,459 करोड़ रुपये आंका है। अगर दोनों समूहों के बीच ये सौदा हो जाता है तो यह कॉर्पोरेट भारत के इतिहास में हुए सभी सौदों में से सबसे बड़ा सौदा होगा। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि, क्या टाटा इतने बड़े सौदे के लिए सहमत होंगे या वे इस मसले पर कड़ा रुख अख़्तियार करेंगे।

आखिर में इस सबसे बड़े कॉरपोरेट विभाजन की असली वजह पैसो को ही माना जा रहा है।

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