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रायपुर, अक्टूबर 5
रविवार को हुई भीषण हिंसा के बाद लखीमपुर खीरी में जहां सामान्य स्थिति तेजी से लौट रही है वहीं हताश विपक्षी दल इस मुद्दे को जिंदा रखने और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
जहां शीर्ष विपक्षी दल भारी पुलिस बैरिकेड्स के कारण लखीमपुर खीरी पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का एक प्रतिनिधिमंडल रविवार की हिंसा के केंद्र में पहुंचने में कामयाब रहा। प्रतिनिधिमंडल में सांसद काकोली घोष और सुष्मिता देव शामिल थे।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ अपने राजनीतिक पदचिह्न का विस्तार करने की कोशिश कर रहे टीएमसी के नेताओं ने उन चार किसानों के परिवार के सदस्यों से मुलाकात की जिनकी मौत भाजपा नेता के वाहन के नीचे आने से बताया जा रहा है। लेकिन उन्होंने अन्य चार के रिश्तेदारों से मिलने की जरूरत नहीं समझी जिन्हें वाहनों से बाहर निकाला गया और उनकी पीट-पीट कर मार दिया गया।
दिलचस्प बात यह है कि टीएमसी सांसदों ने लखीमपुर खीरी किसान आंदोलन से जुड़ने के लिए सिंगूर का हवाला दिया। लेकिन उन्होंने नंदीग्राम का नाम भी नहीं लिया जिसने मई 2021 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नकार दिया था।
सिंगूर और नंदीग्राम किसानों आंदोलन के केंद्र थे जिसने तृणमूल को पश्चिम बंगाल में राजनीतिक आधार हासिल करने और कम्युनिस्ट शासन को हटाने में मदद की। दोनों केंद्रों में से नंदीग्राम काफी सुर्खियों में था क्योंकि वहां अधिक किसानों हताहत हुए थे। यहां तक कि ममता की लोकप्रियता भी नंदीग्राम अभियान के बाद ही बढ़ी।
टीएमसी सांसदों ने शोक संतप्त परिवार के सदस्यों से कहा कि पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी जरूरत पड़ने पर लखीमपुर खीरी आएंगी। उन्होंने कहा, “वह किसानों के हित के लिए 26 दिनों तक सिंगूर में धरने पर बैठी थीं और यह सबसे बड़ा आंदोलन था।” पूरी बातचीत के दौरान टीएमसी नेताओं ने नंदीग्राम का जिक्र तक नहीं किया।
नंदीग्राम इस बात का प्रतिक है कि ममता को कभी भी किसानों का समर्थन नहीं मिला। अपने आप को किसानो का सबसे बड़ा हितैषी सिद्ध करने ममता ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ा। लेकिन मई 2021 के चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए वे नंदीग्राम में पराजित हो गई।
इस बीच, हिंसा प्रभावित लखीमपुर खीरी में जनजीवन तेजी से सामान्य हो रहा है। मंगलवार को सड़कों पर नियमित यातायात देखा गया और दुकानों के शटर खुल गए।