भारतीय सेना की खुफिया एजेंसियों द्वारा मेघालय-असम-बांग्लादेश सीमा पर चलाए जा रहे तीव्र और सुनियोजित एक ऑपरेशन के दौरान ख़तरनाक कट्टर उल्फा (आई) कमांडर एस एस कर्नल दृष्टि राजखोवा ने अपने चार साथियों के साथ सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। उसके चारों साथी एस एस कॉर्पोरल वेदांता, यासीन असोम, रूपज्योति असोम और मिथुन असोम हैं।
इन सभी के पास से भारी मात्रा में हथियार भी बरामद किए गए हैं।
यह ऑपरेशन एजेंसियों को प्राप्त पुष्ट जानकारियों पर आधारित था, जो पिछले नौ महीनों की अथक खोज और प्रयासों का परिणाम है।
भारतीय सेना के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार कि एक वरिष्ठ अधिकारी जो पहले नॉर्थ ईस्ट में मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) में तैनात था ने इस ऑपरेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये अधिकारी पहली बार 2011 में राजखोवा के संपर्क में आये और अन्य स्टेशनों में उसकी पोस्टिंग के बावजूद उसके साथ संवाद बनाये रखा । वे उल्फा नेता को हथियार डालने के लिए लगातार मना रहे थे ।
हालांकि, आखिरी प्रयास नौ महीने पहले शुरू हुआ और अधिकारी आखिरकार उसे आत्मसमर्पण करने में सफल रहे। आत्मसमर्पण के तुरंत बाद, राजखोवा और उनके साथियों को पूछताछ के लिए एक अज्ञात स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया।
दृष्टि राजखोवा लंबे समय तक उल्फा विद्रोहियों की वांछित सूची में रहा है और वह असम के निचले हिस्सों में उल्फा गतिविधियों में संलिप्त था। उसका आत्मसमर्पण करना अब इस भूमिगत संगठन के लिए एक बड़ा झटका है और इससे क्षेत्र में शांति स्थापित करने की दिशा में एक नई शुरुआत हुई है। इस सफल ऑपरेशन के द्वारा भारतीय सेना ने फिर से पुष्टि की है कि, वह हर समय इन इलाकों में शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
उत्तर पूर्वी राज्यों में अशांति को पुनर्जीवित करने की योजना बना रहे विद्रोहियों के लिए दृष्टि राजखोवा का आत्मसमर्पण एक बड़े झटके के रूप में आएंगे। वह उल्फा नेता परेश बरुआ के बेहद करीबी और विश्वास पत्र थे, जो इस समय कथित तौर पर चीन में शरण ले रखी है ।
उन्हें रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड (आरपीजी) के विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है और 2011 तक उल्फा की 109 बटालियन के कमांडर थे। वह केंद्रीय समिति के सदस्य भी हैं। नवंबर 2011 में, परेश बरुआ ने बिजय दास उर्फ बिजय चीनी के साथ राजखोवा को डिप्टी सी-इन-सी बनाया जब केंद्रीय समिति का पुनर्गठन किया।