विदेश में देश के निंदा करते पूर्व सुरक्षा सलाहकार

शिव शंकर मेनन

आर कृष्णा दास

भारत में शायद ही कोई पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन एस ए) रहे हो, जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की नीति की आलोचना करना पसंद करता हो। शिव शंकर मेनन इनमें अपवाद प्रतीत होते हैं।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सी. शंकरन नायर के परपोते और 1972 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के अधिकारी का अपना अलग ही अंदाज़ रहा है। वे बेबाक रूप से भारत की नीतियों के बारे में अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अपने विचार रखते हैं जो उस पद पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा नहीं की जा सकती।

एक अमेरिकी पत्रिका में उन्होंने आरोप लगाया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मोदी सरकार को अपने घरेलु विवादास्पद मामलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुली छूट दे रखी हैै।

मेनन द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ भारत-अमेरिका संबंधों के बारे में लिखे गए लेख हाउ “ट्रम्प एंड मोदी रिफैशनड द यू.एस.-इंडियन रिलेशनशिप” को अभी तक भारत-अमेरिका संबंधों में सबसे कड़ी आलोचना के रूप में देखा जा रहा है।

इस लेख की राजनेताओं ने ही नहीं बल्कि नौकरशाहों और राजनायिकों के एक वर्ग ने भीे तीखी आलोचना की थी। एक अधिकारी ने कहा, “एक पूर्व एनएसए जिनकी देश के सभी गुप्त दस्तावेजों तक पहुंच रही हो, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारतीय नीतियों की आलोचना करते वक्त ध्यान रखना चाहिए।”

मेनन का झुकाव हमेशा से एक राजनीतिक पार्टी की ओर रहा है और विवादों से उनका नाता नया नही है। 2010 से 2014 तक एनएसए के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, देश में कई बड़े आतंकी हमले हुए ।

2012 में जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चीन के कुछ हिस्सों को अपना अभिन्न अंग घोषित करके पासपोर्ट जारी करना शुरू किया, तो तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसका विरोध किय। ऐसे गंभीर मामले पर मेनन का रवैया हैरान कर देने वाला था ।

मेनन को कम से कम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में चीन के इस कदम की निंदा करनी थी जो उन्होंने नही किया।

पाकिस्तान के अलावा वे चीन में राजदूत के रूप में कार्य कर चुके है और उनका झुकाव चीन के तरफ साफ दिखता है। उन्होंने “द बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट जिसका उद्देश्य चीन को एशिया और यूरोप में व्यापार और अन्य क्षेत्रो में समन्वय स्थापित करने के लिए जोड़ना था उसे भी भारत के लिए एक अवसर कहा।

जबकि यह वही परियोजना है जिसके कारण हमारे वीर जवानो को गलवान घाटी में शहीद होना पड़ा चीन के किये अक्साई चीन क्षेत्र जिसका गलवान भाग है इस परियोजना के लिए काफी महत्व रखता है।

मेनन सीएए, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य गंभीर सुरक्षा मुद्दों की खुल करआलोचना कर चुके है।

कई राजनयिकों का कहना है कि मेनन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वैचारिक मतभेद हो सकता है, लेकिन देश के शीर्ष सुरक्षा पद पर आसीन रहे व्यक्ति के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय नीतियों की आलोचना करना उचित नहीं है। आखिरकार, यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है।

ऐसा नहीं है की वे काफी सिद्धांतवादी है। और उनका विदेश सचिव बनना इस बात का प्रतिक है।

सितंबर 2006 में, वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी राजीव सीकरी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन दिया और छुट्टी पर चले गए। 1970 बैच के आईएफएस अधिकारी सीकरी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर सेवानिवृत्ति से एक वर्ष पूर्व नौकरी छोड़ने का आग्रह किया था।

राजीव सीकरी, मेनन को विदेश सचिव बनाये जाने से नाराज बताए जा रहे थ। क्यूंकि मेनन उनसे दो साल कनिष्ठ थे। उनकी नियुक्ति के लिए सारे स्थापित नियमो को किनारे कर दिया गया।

मेनन को विदेश सचिव बनाने के किये एक नहीं १४ अन्य उनसे वरिस्थ भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों को किनारे किया गया जो एक उपवाद है।

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