प्रधानमंत्री के मन की बात में छत्तीसगढ़ की माता मावली मेला का जिक्र

ऐतिहासिक माता मावली मेला

न्यूज़ रिवेटिंग

रायपुर, जुलाई 31

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक माता मावली मेला का जिक्र किया।

कार्यक्रम की 91वीं कड़ी में अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में बस्तर के नारायणपुर का ‘मावली मेला’ भी बहुत खास होता है।

बस्तर के नारायणपुर में आयोजित होने वाले माता मावली मेला एक ऐसा उत्सव है जो छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों की कई अलग अलग झलक दिखाता है। नारायणपुर माता मावली मेला बस्तर के साथ साथ पूरे छत्तीसगढ़ विश्व प्रसिद्ध मेला माना जाता है।

माता मावली मेला बस्तर का सबसे प्राचीन मड़ई-मेलों में से एक है। जो लोक कला और संस्कृति का संगम है यह मेला नारायणपुर जिले का ऐतिहासिक प्राप्त मड़ई मेला है। मालवी मड़ई में अंचल के आदिवासियों की लोक कला और संस्कृति पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों की झलक देखने को मिलती है।

यह मेला संस्कृति और परम्पराओं का हिस्सा है जो सदियों से चलता आ रहा है माता मावली मेला में लगभग 84 परगना के देवी देवता शामिल होते है जिसके बाद मावली मंदिर के पास पीपल पेड़ के नीचे नगाड़ों थाप पर अपना शक्ति प्रदर्शन करते है।

प्रधानमंत्री ने कहा पास ही, मध्य प्रदेश का ‘भगोरिया मेला’ भी खूब प्रसिद्ध है। कहते हैं कि, भगोरिया मेले की शुरूआत, राजा भोज के समय में हुई है। तब भील राजा, कासूमरा और बालून ने अपनी-अपनी राजधानी में पहली बार ये आयोजन किए थे। तब से आज तक, ये मेले, उतने ही उत्साह से मनाया जा रहे हैं।

इसी तरह, गुजरात में तरणेतर और माधोपुर जैसे कई मेले बहुत मशहूर हैं। ‘मेले’, अपने आप में, हमारे समाज, जीवन की ऊर्जा का बहुत बड़ा  स्त्रोत होते हैं। आपके आस-पास भी ऐसे ही कई मेले होते होंगे। आधुनिक समय में समाज की ये पुरानी कड़ियाँ ‘एक भारत–श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं।

उन्होंने कहा, “युवाओं को इनसे जरुर जुड़ना चाहिए और आप जब भी ऐसे मेलों में जाएं, वहां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी शेयर करें। आप चाहें तो किसी खास हैशटैग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे उन मेलों के बारे में दूसरे लोग भी जानेंगे। आप Culture Ministry की website पर भी तस्वीरें upload कर सकते हैं। अगले कुछ दिन में Culture Ministry एक competition भी शुरू करने जा रही है, जहाँ, मेलों की सबसे अच्छी तस्वीरें भेजने वालों को इनाम भी दिया जाएगा  तो फिर देर नहीं कीजिए, मेलों में घूमियें, उनकी तस्वीरें साझा करिए, और हो सकता है आपको उसका ईनाम भी मिल जाए”।

मोदी ने कहा कि देश में मेलों का भी बड़ा सांस्कृतिक महत्व रहा है I मेले, जन-मन दोनों को जोड़ते हैं I हिमाचल में वर्षा के बाद जब खरीफ की फसलें पकती हैं, तब, सितम्बर में, शिमला, मंडी, कुल्लू और सोलन में सैरी या सैर भी मनाया जाता है I सितंबर में ही जागरा भी आने वाला है। जागरा के मेलों में महासू देवता का आह्वाहन करके बीसू गीत गाए जाते हैं। महासू देवता का ये जागर हिमाचल में शिमला, किन्नौर और सिरमौर के साथ-साथ उत्तराखंड में भी होता है।

देश में अलग- अलग राज्यों में आदिवासी समाज के भी कई पारंपरिक मेले होते हैं। इनमें से कुछ मेले आदिवासी संस्कृति से जुड़े हैं, तो कुछ का आयोजन, आदिवासी इतिहास और विरासत से जुड़ा है, जैसे कि, आपको, अगर मौका मिले तो तेलंगाना के मेडारम का चार दिवसीय समक्का-सरलम्मा जातरा मेला देखने जरुर जाईये। इस मेले को तेलंगाना का महाकुम्भ कहा जाता है। सरलम्मा जातरा मेला, दो आदिवासी महिला नायिकाओं – समक्का और सरलम्मा के सम्मान में मनाया जाता है। ये तेलंगाना ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के कोया आदिवासी समुदाय के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। आँध्रप्रदेश में मारीदम्मा का मेला भी आदिवासी समाज की मान्यताओं से जुड़ा बड़ा मेला है। मारीदम्मा मेला जयेष्ठ अमावस्या से आषाढ़ अमावस्या तक चलता है और यहाँ का आदिवासी समाज इसे शक्ति उपासना के साथ जोड़ता है। यहीं, पूर्वी गोदावरी के पेद्धापुरम में, मरिदम्मा मंदिर भी है। इसी तरह राजस्थान में गरासिया जनजाति के लोग वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को ‘सियावा का मेला’ या ‘मनखां रो मेला’ का आयोजन करते हैं।

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